Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
बालक को पहिले महीने में डेढ़ २ घण्टे, दूसरे महीने में दो २ घण्टे, तीसरे महीने में ढाई २ घण्टे और चौथे महीने में तीन २ घण्टे के पीछे दूध पिलाना चाहिये, इसी प्रकार से प्रत्येक महीने में आधे २ घण्टे का अन्तर बढ़ाने जाना चाहिये किन्तु जब बालक सात आठ महीने का हो जाये तब तीन चार घण्टे के पीछे दूध पिलाने का समय नियत कर लेना चाहिये।
बहुत सी स्त्रियां बारह वा चौदह महीने तक बालक को दूध पिलाती रहती हैं परन्तु ऐसा करना बालक को बहुत हानि पहुंचाता है, क्योंकि जब बालक जन्मता है तब से लेकर सात आठ महीने तक स्त्री को ऋतुधर्म नहीं होता है इस लिये तब तक का ही दूध बहुत पुष्टिकारक होता है किन्तु जब स्त्री के ऋतुधर्म होने लगता है तब उस के दूध में विकार उत्पन्न हो जाता है इस लिये स्त्रियों को केवल आठ नौ महीने तक ही बालकों को दूध पिलाना चाहिये, किन्तु आठ नौ महीने के पीछे दूध का पिलाना धीरे २ कम करके उसके साथ में अन्य खुराक देते रहना चाहिये, दूध पिलाने के बाद स्तन को पोंछ कर स्वच्छ कर लेने का नियम रखना चाहिये कि जिस से चांदे (छाले) न पड़ जावें। ६-दूध पिलाने के समय हिफाजत-वालक को दूध पिलाने के समय माता प्रथम अपने मन में धीरज; उत्साह; शान्ति और आनन्द रख के बालक को देखे', फिर उस को हँसा कर खिलावे और अपने स्तन में से थोड़ा सा दूध निकाल देवे, तत्पश्चात् बालक के मस्तक पर हाथ रखके उस को दूध पिलावे, बालक को दूध पिलानेकी यही उत्तम रीति है, किन्तु बालक को मार कर, पटक कर, क्रोध में होकर, डरा कर अथवा तर्जना (डांट) देकर दूध नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि जिस समय मन में शोक, भय, क्रोध और निराशा आदि दोप होते हैं उस समय माताका दूध बिगड़ा हुआ होता है और वह दूध जब बालक के पीने में आता है तो वह दूध बालक को विष के समान हानि पहुँचाता है-इस लिये जब कभी उक्त बातों का प्रसंग होवे उस समय बालक को दूध कभी नहीं पिलाना चाहिये किन्तु जब ऊपर लिखे अनुसार मन अत्यन्त आनन्दित हो उस समय पिलाना चाहिये, इसी तरह माता को अपनी रोगावस्थामें भी बालक को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि वह दूध भी बालक को हानि पहुंचाता है। ७-पूरा दूध न होने पर कर्तव्य उपाय-जहां तक हो सके वहां तक तो बालक को माता के दूध से ही रखना उत्तम है क्योंकि माता का स्नेह बालकपर अपूर्व होता है इस लिये माता की स्थिति में धात्री (धाय) के द्वारा
१-क्योंकि माता की उत्साह, शान्ति, और आनन्द से भरी हुई दृष्टिको देखकर वालक भी हर्षित होगा।॥ २-क्योंकि दूध के अग्रभाग में दूध का विकार जमा रहता है इसलिये पिलाने से प्रथम स्तनमेंसे कुछ दूध निकालकर ही बालक को पिलाना चाहिये।
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