Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
शरीर भी नहीं बढ़ता है, यह संक्षेप से खुराक के विषय में लिखा गया है,
चतुर माताओं को विचार
बाकी इस विषय को देश और काल के अनुसार लेना चाहिये ।
१० - हवा - जिस उपाय से बालक को खुली और स्वच्छ हवा मिलस के वही उपाय करना चाहिये, स्वच्छ हवा के मिलने के लिये हमेशा सुबह और शाम को समुद्र के तट पर मैदान में, पहाड़ी पर अथवा बाग में बालक को हवा खिलाने के लिये ले जाना चाहिये, क्योंकि स्वच्छ हवा के मिलने से बालक के शरीर में चेतनता आती है, रुधिर सुधरता है, और शरीर नीरोग रहता है, प्रत्येक प्राणी को श्वास लेने में आक्सिजन वायु की अधिक आवश्यकता होती है इस लिये जिस कमरे में ताजी और स्वच्छ हवा आती हो उस प्रकार केही खिड़की और किवाड़वाले कमरे में बालक को रखना चाहिये, किन्तु उसको अँधेरे स्थान में, चूल्हे की गर्मी से युक्त स्थानमें, नाली वा मोहरी की दुर्गन्धि से युक्त स्थान में, संकीर्ण, अँधेरी और दुर्गन्धवाली कोरी में, बहुत से मनुष्यों के श्वास लेने से जहां कार्बोलिंक हवा निकलती हो उस स्थान में और जहां अखण्ड दीपक रहता हो उस स्थान में कभी नहीं रखना चाहिये, क्योंकि-जहां गर्मी दुर्गन्धि और पतली हवा होती है वहां आक्सिजन ear बहुत थोड़ी होती है इसलिये ऐसी जगह पर रखने से बालक की तनदुरुस्ती बिगड़ जाती है, अतः इन सब बातों का खयाल कर स्वच्छ और सुखदायक पवन से युक्त स्थान में बालक को रखने का प्रबन्ध करना ही सर्वदा लाभदायक है
११ - निद्रा -- बालक को बड़े आदमी की अपेक्षा अधिक निद्रा लेने की आवश्यकता है क्योंकि - निद्रा लेने से बालक का शरीर पुष्ट और तनदुरुस्त होता है, बालक को कुछ समय तक माता के पसवाड़े में भी सोनेकी आवश्यकता है क्योंकि उस को दूसरे के शरीर की गर्मी की भी आवश्यकता है, इस लिये माता को चाहिये कि कुछ समय तक बालक को अपने पसवाड़े में भी सुलाया करे, परन्तु पसवाड़े में सुलाते समय इस बातका पूरा ध्यान रखना चाहिये कि - पसवाड़ा फेरते समय बालक कुचल न जावे अर्थात् वह रोकर पसवाड़े के नीचे न दब जावे, इस लिये माता को चाहिये कि उस समय में अपने और बालक के बीच में किसी कपड़े की तह बना कर रखले. सोते हुए बालक को कभी दूध नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि सोते हुए बालक को दूध पिलाने से कभी २ माता ऊंघ जाती है और बालक उलटा गिरके गुंगला के मर जाता है. बालक को सोने का ऐसा अभ्यास कराना चाहिये कि वह रात को आठ नौ बजे सो जाये और प्रातःकाल पांच बजे उठ बैठे, दिन में दोपहर के समय एक दो घण्टे और रात को १ - आक्सिजन अर्थात् प्राणप्रद वायु ॥ २ - कार्बोलिक हवा अर्थात् प्राणनाशक वायु ॥
अधिक से अधिक आठ घण्टे
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