Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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तृतीय अध्याय ।
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तक बालक को नींद लेने देना चाहिये, तथा जागने के पीछे उसे विस्तर पर पड़ा नहीं रहने देना चाहिये क्योंकि-ऐसा करने से बालक सुस्त हो जाता है, इस लिये जागने के पीछे शीघ्रही उठने की आदत डालनी चाहिये, नींद में सेते हुए बालक को जगाना नहीं चाहिये क्योंकि-नींद में सोते हुए बालक को जगाने से बहुत हानि होती है, बालक को स्वच्छ हवा और प्रकाशवाले कमरे में सुलाना चाहिये किन्तु खिड़की और किवाड़ बन्द किये हुए कमरे में नहीं सुलाना चाहिये. तथा दुर्गन्धवाले और छोटे कमरे में भी नहीं सुलाना चाहिये, बालकको निद्रा के समय में कुछ तकलीफ होवे ऐसा कुछ भी वर्ताव नहीं होना चाहिये किन्तु निद्रा के समयमें उस का मन अत्यन्त शान्त रहे ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये, बालक को खुराक की अपेक्षासे भी निदा की अधिक आवश्यकता है क्योंकि कम निद्रा से बालक दुर्बल हो जाता है, बालक को गोद में सुलाने की आदत नहीं डालनी चाहिये तथा झू: वा पालने में भी बलात्कार झुला कर पीट कर डरा कर अथवा व्याकुल कर नहीं सुलाना चाहिये और बालगुटिका वा अफीम आदि हानिकारक तथा विपली वस्तु खिलाकर न सुलाना चाहिये क्योंकि उस के खिलाने से बालक का शरीर बिगड़कर निर्बल हो जाता है, उस के शरीर का बन्धान हृढ़ नहीं होता है, किन्तु जब उस को प्रकृति के नियमके अनुसार स्वाभाविक नींद आने लगे तबही सुलाना चाहिये, रात्रि को खुराक देने के पश्चात् दो घण्टे के बाद हँसाने खिलाने दौड़ाने और कुदाने आदि के द्वारा कुछ शारीरिक व्यायाम ( कसरत ) कराके तथा मधुर गीतों के गाने आदि से उस के मन का रञ्जन करके सुलाना चाहिये कि जिस से सुखपूर्वक उसे गहरी नींद आजावे, इसी प्रकार से बालक को पालने में भी हर्षित कर लिटा कर मधुर गीत गाकर धीर २ झुला कर सुलानेसे उस को उत्तम नींद आती है, तथा काफी नींद के आत्राने से उसका शरीर हलका (फुर्तीला) और अच्छा हो जाता है, यदि किसी कारण से बालक को नींद न आती हो तो समझ लेना चाहिये कि इस के पेट में या तो कीड़े हो गये हैं या कोई दूसरा दर्द उत्पन्न हुआ है, इस की जांच कर के जो मालूम हो उस का उचित उपाय करना चाहिये, किन्तु जहां तक हो सके नींद के लिये औषध नहीं खिलाना चाहिये, सोते समय क्रमानुसार पसवाड़ा बदलने की बालक की आदत डालना चाहिये, उस के सोने का बिछौना न तो अत्यन्त मुलायम और न अत्यन्त सख्त होना चाहिये किन्तु साधारण होना चाहिये, झूले में सुलाने की अपेक्षा पालने में सुलाना उत्तम है क्योंकि झुले में सुलाने से बालक के कुबड़े हो जाने का सम्भव है और कुबड़ा हो जाने से वह ठीक रीति से चल नहीं सकता है किन्तु पालने में सुलाने से ऐसा नहीं होता है, बालक की नींद में भंग न १-क्योंकि एक ही पसवाड़े से पडे रहने से आहार का परिपाक ठीक नही होता है ।
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