Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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तृतीय अध्याय ।
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सात आठ दिन में एक वार धोकर साफ करना चाहिये, यदि मस्तक में जुयें और लीख हो जायें तो उन को निकाल के वासित तेल में थोड़ा सा कपूर मिला कर मस्तक पर मालिश करनी चाहिये क्योंकि ऐसा करने से जुये कम पड़ती हैं तथा कपूर न मिला कर केवल वासित तेल का मर्दन करने से मगज़ तर रहता है, मस्तक पर नारियल के तेल का मर्दन करना भी अच्छा होता है योंकि उस के लगाने से बाल साफ होकर बढ़ते और काले रहते हैं. बालों के ओइँछने में इस बात का खयाल रखना चाहिये कि ओइँछते समय उस के बाल न तो खिँचे और न टूटे, क्योंकि वालों के खिचने और टूटने से मगज़ में व्याधि हो जाती है तथा बाल भी गिर जाते हैं, इस लिये बारीक दानवाली कंधि से धीरे २ बालों को ओईंछना चाहिये, मस्तक में तेल सिर्फ इतना डालना चाहिये कि बालक के कपड़े न विगड़ने पावें, बालक मस्तक पर मनमाना साबुन तथा अर्क खींचा हुआ तेल नहीं लगाना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से बाल सफेद हो जाते हैं तथा मगज़ में व्याधि भी हो जारी है।
१६ वा विवाह - बालकपन में लग्न अ विवाह कर देने से बालक स्वपन के सम्बन्ध होने की चिन्ता से यथोचित विद्याभ्यास नहीं कर सकता है, इस से बड़े होने पर संसारयात्रा के निर्वाह में मुसीबत पड़कर उरको संसार में अपना जीवन दुःख के साथ बिताना पड़ता है, केवल यही नहीं किन्तु कच्ची अवस्था में अपक ( न पका हुआ अर्थात् कच्चा ) वीर्य निकलजाने से शरीर का वन्धान टूट जाता है, शरीर दुर्बल, पतला, पीला, अशक्त और रोगी हो जाता है, आयु का क्षय होजाता है तथा उसकी जो प्रजा ( सन्तति ) होती है वह भी वैसी ही होती है, वह किसी कार्य को भी हिम्मत के साथ नहीं कर सकता है, इत्यादि अनेक हानियां वालविवाह से होती हैं, इसलिये पुत्र की अवस्था बीस वर्ष की होने के पीछे और पुत्री की अवस्था
हवा चौदह वर्ष की होने के पीछे विवाह करना ठीक है, क्योंकि जीवन में वीर्य का संरक्षण सब से श्रेष्ठ कार्य और परम फलदायक है, जिस के शरीर में वीर्य का विशेष संरक्षण होता है वह दृढ़, स्थूल, पुष्ट, शूर वीर, पराक्रमी और नीरोग होता है तथा उस की प्रजा ( सन्तति ) भी सब प्रकार से उत्कृष्ट होती है, इस लिये पुत्र और पुत्री का उक्त अवस्था में ही विवाह करना परम श्रेष्ठ है ।
१७- कर्णरक्षा - (कान की हिफाज़त ), बालक के कान ठंढे नहीं होने देना चाहिये, यदि ठंढे होजावें तो कानटोपी पहना देना चाहिये, क्योंकि ऐसा न करने से सर्दी लग कर कान पक जाते हैं और उन में पीड़ा होने लगती है, यदि कभी कान में दर्द होने लगे तो तेल को गर्म कर के कान के भीतर उस १ उस के अर्थात् बालक के ॥
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