Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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तृतीय अध्याय।
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क्योंकि प्रसूतिके पश्चात् तीन दिन तक माता के दूध में कई प्रकार के उष्णता आदि के विकार रहते हैं. किन्तु तीन दिन के पश्चात् भी दूध की परीक्षा कर के पिलाना चाहिये, माता के दूध की परीक्षा यह है कि-यदि दूध पानी
डालने से मिल जाये, फेन न दीखे, तन्तु सरीखे न पड़ जावें, ऊपर तर न गे, फटे नहीं, शीतल, निर्मल; स्वच्छ और शंख के समान सफेद होवे, । स दूध को स्वच्छ समझना चाहिये, इस प्रकार से तीन दिन के पीछे दूधकी परीक्षा करके बालकको माता का दूध पिलाना चाहिये, यदि कदाचित् माता के स्तनों में दूध न आवे तो गाय का दूध और दूध से आवा कुछ गर्म सा पानी (जैसा मा का दूध गर्म होता है वैसा ही गर्म पानी लेना चाहिये)
और कुछ मीठा हो जाये इतनी शक्कर, इन तीनों को मिलाकर बालक को पिलाना चाहिये परन्तु इन तीनों वस्तुओं के मिलाने में ऐसा करना चाहिये
-पहिले शक्कर और पानी मिलाना चाहिये तथा पीछे उस में दूध मिलाना चाहिये, यह मिश्रण माता के दूध के समान ही गुण करता है, यह (मिश्रण) बालक को दो दो घण्टे के पीछे थोड़ा २ पिलाना चाहिये परन्तु जब माता के स्तनों से दूध आने लगे तव इस (मिश्रण का पिलाना बन्द कर माता का ही दृध पिलाना चाहिये, तथा दोनों स्तनों से क्रमानुसार दूध पिलाना चाहिये क्योंकि
सा न करने से दूध से भर जाने के कारण स्तन फूल कर सूज जाता है। ५-दूध पिलाने का समय-बालक को वार वार दूध नहीं पिलाना चाहिये दिन्तु नियम के अनुसार पिलाना चाहिये, क्योंकि नियम के विरुद्ध पिलाने से पहिले पिये हुए दूध का ठीक रीति से परिपाक न होने पर फिर पिलाने के द्वारा बालक को अजीर्ण हो जाता है और ऐसा होनेसे बालक रोगाधीन हो जाता है, इसी प्रकार एक वार में मात्रा से अधिक पिला देनेसे वह पिया हुआ दूध कुदरती नियम के अनुसार पेट में ठहरता नहीं है किन्तु वमन के द्वरा निकल जाता है, यदि कदाचित् वमन के द्वारा न भी निकले तो बालक के पेट को भारी कर तान देता है, पेट में पीड़ा को उत्पन्न कर देता है और जर बालक उक्त पीड़ा के होने से रोता है तब मूर्ख स्त्रियां उस के रोने के कारण का विचार न कर फिर शीघ्र ही स्तन को बालक के मुँह में दे देती हैं तथा बालक नहीं पीता है तो भी बलात्कार से उसे पिलाती हैं, इस प्रकार वा वार पिलाने से बालक को तो हानि पहुँचती ही है किन्तु माताको भी बहुत हानि पहुँचती है अर्थात् वार वार पिलाने से माता के स्तन से दूध नहीं उतरता है (आता है) इस से बालक रोता है तथा उस के अधिक रोनसे माता बहुत घबड़ाती है और ऐसा होने से दोनों (माता और बालक) नियल हो जाते हैं, बालक के मुँह में स्तन देकर उस को नींद नहीं लेने देना चाहिये और न माता को नींद लेना चाहिये क्योंकि उस से स्तन में तथा बालक के मुंह में छाले पड़ जाते हैं।
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