Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
तृतीय अध्याय ।
११५
चाहिये, बोझ को नहीं उठाना चाहिये, घर में पड़े रहने से, कुछ कसरत (परिश्रम) न करने से और स्वच्छ हवा का सेवन न करने से गर्भवती स्त्री के अनेक प्रकार का दर्द हो जाने का सम्भव होता है तथा कभी २ इन कारणों से रोगी तथा मरा हुआ भी बालक उत्पन्न होता है, इस लिये इन बातों से गर्भवती को बचना चा:ये तथा उस को खाने पीने की बहुत सम्भाल रखनी चाहिये, भारी और अर्ज ण करनेवाली खुराक कभी नहीं खानी चाहिये, बहुत पेट भर कर मिष्टान्न (मिठाई) नहीं खाना चाहिये, बहुत से भोले लोग यह समझते हैं कि गर्भवती स्त्री के आहार का रस सन्तति को पुष्ट करता है इस लिये गर्भवती स्त्री को अपनी मात्रा से अधिक आहार करना चाहिये, सो यह उन लोगों का विचार अत्यन्त भ्रमयुक्त है, क्योंकि सन्तान की भी पुष्टि नियमित आहार के ही रग्म से हो सकती है फिन्तु मात्रा से अधिक आहार से नहीं हो सकती है, हां ग्रह वेशक टीक है कि आहार में कुछ घृत तथा दुग्ध आदि का उपयोग अवश्य करना चाहिये कि जिस से में और गर्भिणी के दुर्बलता न होने पावे, परन्तु मात्रा से अधिक आहार तो भूल कर भी नहीं करना चाहिये, क्योंकि मात्रा से अधिक किया हुआ आहार न केवल गर्भिणी को ही हानि पहुंचाता है किन्तु गर्भग्थ सन्तान को भी अनेक प्रकार की हानियां पहुंचाता है, इस के सिवाय अधिक आहार से गर्भस्थिति की प्रारम्भिक अवस्था में ही कभी २ स्त्रीको ज्वर आने लगता है तथा वमन भी होने लग: है. यदि गर्भवती म्री गर्भावस्था में शरीर की अच्छी तरह से सम्भाल रक्खे तो "स को प्रसव समय में अधिक वेदना नहीं होती है, भारी पदार्थों का भोजन करने से अजीर्ण हो कर दम्त होने लगते हैं जिस से गर्भ को हानि पहुंचने की सम्भावना होती है, केवल इतना ही नहीं किन्तु असमय में प्रसूत होने का भी भय रहता है, गर्भवती को ठंढ़ी खुराक भी नहीं खानी चाहिये क्योंकि ठंडी खुराक से पेट में वायु उत्पन्न हो कर पीड़ा उठती है, तेलवाला तथा लाल मिचों से वधारा (2का) हुआ शाक भी नहीं खाना चाहिये क्योंकि इस ये खांसी हो जाती है और ग्यांसी हो जाने से बहुत हानि पहुंचती है, अगर्भवती (बिना गर्भवाली) स्त्री की उपेक्षा गर्भवती स्त्री को बीमार होने में देरी नहीं लगती है इस लिये जितने आह रका पाचन ठीक रीति से हो सके उतना ही आहार करना चाहिये, यद्यपि गर्भपती स्त्री को पौष्टिक (पुष्टि करनेवाली) खुराक की बहुत आवश्यकता है इस लिये उस को पौष्टिक खुराक लेनी चाहिये, परन्तु जिस से पेट अधिक तन जावे
और वह ठीक रीति से न पच सके इतनी अधिक खुराक नहीं लेनी चाहिये, गर्भवती स्त्री के उपवास करने से स्त्री और बालक दोनों को हानि पहुंचती है अर्थात् गर्भ को पोपण न मिलने से उसका फिरना बंद हो जाता है तथा वह सुख पड़ जाता है तथा गर्भवती स्त्री जब आवश्यकता के अनुसार आहार किये हुए रहती है उस समय गर्भ जितना फिरता है उतना उपवास के दिन नहीं फिरता है क्यों कि वह पोषण के लिये बल मारता है (जोर लगाता है) तथा थोड़ी देरतक बल
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com