Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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तृतीय अध्याय ।
१०९ भिन्न २ वस्तुओं पर रुचि चलती है, कभी २ तो ऐसा भी देखा गया है कि उस का मन किसी अपूर्व ही वस्तु के खाने को चलता है कि जिस के लिये पहिले कभी इच्छा भी नहीं हुई थी, कभी २ ऐसा भी होता है कि जिस वस्तु में कुछ भी सुगन्धि न हो उस में भी उस को सुगन्धि मालूम होती है अर्थात् वेर, इमली, रख, धूल, कंकड़, कोयला और मिट्टी आदि में भी कभी २ उसको सुगन्धि मालूम होती है तथा इन के खाने के लिये उस का मन ललचाया करता है, किसी २ स्त्री का मन अच्छे २ वस्त्रों के पहरने के लिये चलता है, किसी २ का मन अच्छी २ बातों के करने तथा सुनने के लिये चलता है, तथा किसी २ का मन उत्तम २ पदार्थों के देखने के लिये चला करता है।
पेट में बालक का फिरना। पेट में वालक का फिरना चौथे वा पांचवें महीने में होता है, किन्तु इस से पूर्व नीं होता है क्योंकि गर्भस्थ सन्तान के बड़े होने से उस की गति (इधर उधर हि ठना आदि चेष्टा ) मालूम होती है किन्तु जहांतक गर्भस्थ सन्तान छोटा रहता है वहांतक गति नहीं मालूम होती है । __यद्यपि ऊपर कहे हुए सब चिन्ह तो स्त्री से पूंछने से तथा जांच करने से मालूम हो सकते हैं परन्तु गर्भ स्थिति के कारण पेट का बढ़ना तो प्रत्यक्ष ही मा ग़म हो जाता है, किन्तु प्रथम दो वा तीन महीनेतक तो पेट का बढ़ना भी स्पट रीति से मालूम नहीं होता है परन्तु तीन महीने के पीछे तो पेट का बढ़ना साफ तौर से मालूम होने लगता है अर्थात् ज्यों २ गर्भस्थ बालक बड़ा होता जाना है त्यों २ पेट भी बढ़ता जाता है, परन्तु यह भी स्मरण रहना चाहिये कि केवल पेट के बढ़ने से ही गर्भस्थिति का निश्चय नहीं कर लेना चाहिये किन्तु इस के साथ में उपर कहे हुए चिन्ह भी देखने चाहिये क्योंकि उदर की वृद्धि तो ता 'निल्ली और जलोदर आदि कई एक रोगों से भी हो जाती है। गर्भिणी स्त्री के दिन पूरे होने के समय में
होनेवाले चिन्ह । इस समय में बहुमूत्रता होती है अर्थात् वारंवार पेशाव करने के लिये जाना पड़ता है परन्तु उस में दर्द नहीं होता है, किसी २ स्त्री के गर्भ स्थिति की प्रारं. भिक दशा में भी बहुमूत्रता हो जाती है परन्तु इस दशा में उस के कुछ पीड़ा हुआ करती है, वारंवार पेशाव लगने का कारण यह है कि-गर्भाशय और मूत्राशय ये दोनों बहुत समीप हैं इसलिये गर्भाशय के बढ़ने से मूत्राशय पर दवाव पड़ता है उस दवाव के पड़ने से वारंवार पेशाब लगता है, परन्तु यह ( वारंवार पेशाव का लगाना) भी कुछ समय के पश्चात् आप ही बन्द हो जाता है, इस के सिवाय
१० जै० सं०
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