Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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द्वितीय अध्याय ।
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आपने, ऐब न देखै कोय ॥ करै उजालो दीपे पर, तले अंधेरो होय ॥ १२५ ॥ अपनी अपनी ठौर पर, सब को लागे दाव || जल में गाड़ी नाव पर, थैल गाड़ी पर नाव ॥ १२६ ॥ ग्राहक सबै सपूत के सारे काज सपूत || सब को ढांकन होत है, जैसे वन को सूत ॥ १२७ ॥ आप कष्ट सहि और की, शोभा करत सपूत ॥ चरखो पींजण चरख चढ़ि, जग ढ़ंकन ज्यों सूत ॥ १२८ ॥ सुधिर सुधाने न छोड़िये, जब ल होय न और ॥ पिछलो पांव उठाइये, देखि धरन को ठौर ॥ १२९ ॥ को सुख को दुख देत है, देत करम झकझोर ॥ उरझै सुरझे आपही, धजों पवन के जोर ॥ १३० ॥ भली करत लागे विवें, बिलॅब न बुरे विचार ॥ भवन बनावत दिन लगे, दहित लगत न वीर ॥ ३३३ ॥ विनसत वार न लागही, ओछे नर की प्रीत || अम्बर डम्बर सांलू के, ज्यों बालू की भीत ॥ १३२ ॥ बड़े वचन पलटें नहीं कहि निरवार्है धीर ॥ कियो बिभीषण लेकपति, पाइ विजय रघुवीर ॥ १३३ ॥ लखित जननी उदरें में, देखि कहै सब कोय || दोहद ही कहि देत है, जैसी सन्तत होय ॥ १३४ ॥ प्रेरकं ही से होत है, कारज सिद्ध निदान ॥ चड़े धनुष हूँ ना चलें, विना चलाये बान ॥ १३५ ॥ सुख सज्जन के मिलन को दुरजन मिले जननि ॥ जानै ऊख मिठास को, जब मुख नींव चवाय ॥ १३६ ॥ जाहि मिले सुख होत है, तिहिँ विजुरे दुख होय ॥ सूरे उदय फूल कमल, ता विन सँकुचे सोय ॥ १३७ ॥ कारज सोइ सुधारि है, जो करिये समभाय ॥ अतिबरसे वरसे विना, ज्यों खेती कुम्हलाय || १३८ || आपहि कहा बखानिये, भली बुरी के जोग ॥ वूंटे धन की बात को, कहैं बटाऊ लोग ॥ १३९ ॥ जाने सो बूझे कहा, आदि अन्त विरतं ॥ घर जन्मे पशु के कहा, कोउ देखत है दन्त ॥ १४० ॥ जो कहिये सो कीजिये, पहिले करि निरंधार ॥ पानी पी घर पूँछनो, नाहिनें भलो विचार ॥ १४१ ॥ पीछे कारज कीजिये, पहिले यतन विचार ॥ बड़े कहत हैं बांधिये, पानी पहिले वीर ॥ १४२ ॥ ठीक किये विन और की, बात सांच मत थपें ॥ होत अँधेरी रैन
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में,
जेवरी सांप ॥ १४३ ॥ एक ठौर है सुजैन खेल, तजै न अपनो अंग ॥ मणि विपहर विषैकर सर, सदा रहत इक संग ॥ १४४ ॥ हिये दुष्ट के वंदन से, मधुरं न तिकस बात || जैसी कडुई बेलि के, को मीठे फल खात ॥ १४५ ॥ ताही
१ - दीवा ॥ २ - जमीन ॥ ३ - सिद्ध करता है ॥ ४ - ढांकने वाला ॥। ६-तरु ॥ ७- झंडी ॥ ८-हवा ।। ९- देरी ॥। १० वर ॥ ११ - गिराने १३- बादल ॥ १४-लंका का मालिक ॥। १५ - रामचंद्र ॥ १६ - माता ॥ तान औलाद ॥ १९ - प्रेरणा करने वाला || २० - आखिरकार ॥ २२- ाला, सांठा २३- मीठापन || २४ - जुदा होने पर ।। २५- सूर्य २७ - वृत्तान्त, हाल ॥ २८- निश्चय ।। २९- नहीं ॥ ३० - कोशिश, ३२- नान ॥ ३३ - रात्रि ॥ ३४ - रस्सी, डोरी ॥ ३५- अच्छे आदमी ॥ ३६- दुष्ट पुरुष | ३७ - विष को दूर करने वाला || ३८ - विष पैदा करने वाला ॥ ३९ सांप ॥ ४०--मुख | ४१-मीठा ॥
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५- अच्छी जगह ॥ में ॥ १२- देरी ॥ १७- पेट ॥ १८-सं
२१- मालूम पड़ता है ॥
२६ - मुर्झा जाता है || उपाय || ३१ - बाड़ ॥
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