Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा । हाथ मले अरु सिर धुणे, लालच बुरी बेलाय ॥ २९६ ॥ अमेरवेलि विनमूल छे", प्रतिपालेछे ताहि ॥ एम नाथ ने बीसरी, ढूंढै छे तूं काहि ॥ २९.७ ॥ हीरा पड्यो चुहीट में, छोर रह्यो लिपटाय ॥ किननेहुँ मूरख नीसर्या, पारखि लयो उठाय ॥ २९८ ॥ आपे छे जो मान विण, अमिरेत भलो न जाण ॥ प्रेमसहित विष पण दिवै, भलों त्यांग छे प्राण ॥ २९९ ॥ मुक्ता वणे कपूर पण, चौतक जीवण जोय ॥ एतो भोटो तोय पण, व्योल मुख विष होय ॥ ३०९ ।। यह द्वितीय अध्याय का सुभाषित रत्रावलि नामक दूसरा प्रकरण समाप्त हुआ ॥
तिसरा प्रकरण ।
चेलाँ गुरु प्रश्नोत्तर। गोहूं सुखा खेत में, घोड़ा हींसकराय ॥ पलंग थैकी धरै पोढिया, कहु चेला किण दाय ॥१॥
गुरुजी पायो नहीं॥ पवन पचरै पत्तली, कामणि मुख कमलाय ॥ मांडी चौपड़ मेलग्यो, कहु चेला किण दाय ॥२॥
गुरुजी सारी नहीं॥ रजनी अन्धारो भयो, मिली रात वीहीय ॥ बायो खेत न नीपजो, कहु चेला किण दाय ॥३॥
गुरुजी ऊंगो नहीं॥
१-लोभ ॥ २-दुःख देनेवाला ।। ३--आकाशवेल ।। ४-विनाजद की। है ।। ६पालता है॥ ७-उस को॥ ८-ऐसे ॥ ९-भूलकर । १०-बाजार।। ११-धुल ।। १२निकल गये॥ १३--परखनेवाला ।। १४-अमृत।। १५-प्रेम के साथ ॥ १६-भी। १७छोडना ॥ १८-मोती॥ १९-पपीहा ॥ २०-इतना ।। २१-बड़ा ।। २२.-पानी ।। २३सांप ॥ २४-y में ॥ २५-जहर ॥ २६-होता है ।। २७-इस चेला गुरु प्रश्नोत्तर के अन्त में दिये हुए नोट को देखिये ॥२८-गेहूं ॥ २९-हिनहिनाता है ।। ३०-होते हुए भी ।। ३१-पृथिवी ॥ ३२-शयन किया ॥ ३३-बतलाओ चेले क्या कारण है (इस चौथे पाद का सर्वत्र यही अर्थ समझना चाहिये)॥ ३४-सींचा हुआ, पपानी पिलाया हुआ, खाट का पागा (इसि प्रकार से तीन प्रश्नों के उत्तर संबंधी पद के सर्वत्र ३ अर्थ किये जायगे, वे सर्वत्र क्रम से जान लेना चाहिये, क्योंकि मारवाड़ी भाषा में वह एक पद तीनों अर्थों का वाचक है)।। ३५-हवा ।। ३६उडाती है ।। ३७-पतग ।। ३८-स्त्री ॥ ३९-मुझा रहा है ।। ४०-शुरू की हुई ।। ४१-रखगया । ४२-बँची, अच्छी स्त्री, सारी॥ ४३-रात्रि ॥ ४४-अंधेरा ॥ ४५-डरावनी ॥ ४६-बोया हुआ ॥ ४७-पैदा हुआ ॥ ४८-चन्द्रोदय, सूर्योदय, और उगा हुआ ॥
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