Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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द्वितीय अध्याय ।
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विचारिके, होय नहीं उपहास ॥ केपि नी पूँछ प्रजौलतां, भयो लंके को नास ॥ २८९ ॥ सोरठा - अड़े न सांचाहिँ आंच, जूठ न झाले आंचने ॥ पिघले पल में कांच, पंण कैदि रत्न न पीघले " ॥ २८२ ॥ इक तो इक ढील दे, 'तुटे न कचोर ॥ ताणतणत तूटही, लोहा सांकर सार ॥ २८३ ॥ समयप्रमाणे सर्वदों, करिये काम तमाम ॥ दामे होमे निजे नाम वैलि, दीपै कुल राय धाम ॥ २८ ॥ काजी पण पोंजी बने, शाह बने छे चोर ॥ उत्तम ने अधमै करे, लोभी निपट निठोरें ॥ २८५ ॥ तियै मर्कटे शिशु भूप को, मन नहिँ अचल सुमित्र ॥ सावन रह कर सदा, करो प्रतीति पवित्र ॥ २८६ ॥ प्रेनें सत्य प्रर्केट्यो " तिहां, रहे न पेंड़दा लेश ॥ योग्यायोग्य विचारणी, निर्भे न नेट' निमेषै ॥ २८७ ॥ शक्ति तां पग अवैरनां, दुःख न टाले जे हे ' ॥ शरद ऋतू ना मेघसम, फोकट गांजे ते ॥ २८८ ॥ काम पड़े परखाय है, वस्तु मात्र को नीर ॥ वि परखे
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हुए देखाये प्रिय वीर ॥ २८९ ॥ जिभ्यों में अमित वसे, विप भी तिण के पास || इक बोलें तो लाख ले, एके लाख विनास ॥ २९० ॥ बात बात सब एक है, बत दावन में फेरें' ॥ एक पैवेन बादल मिले, एक देत बीखेर ॥ २९३ ॥ भाग्य पुरुष को, (तो) दुख फीटी सुख श्रय ॥ दि' जो निर्बल भाग्य तो, सुज समूलो जय || २९२ ॥ जो न जरे निश्चय करी, कॅरेंजो कार्य हमेश || सदा हो सुख यश वली, कँडी न पावो केश ॥ २९३ ॥ बुद्धि विना नर aust Fant बलवान ॥ बुद्धि थकी सुख सम्प जे, बुद्धि गुणांरो श्रीन ॥ २९ ॥ साहस प्राक्रम बुद्धि वले, उद्यम धैर्य जु होय ॥ तो डरता रहे देवपि, जीति सके नहिं कोय ॥ २९५॥ मांखी बैठी गुड़ परें; रही पंख लिपटाय ॥
२- बन्दर || ३- जलाने पर ॥ ४-लङ्का ॥ ५- पास
- परन्तु ॥ १०-कभी ॥
१ - हँसी, ठट्ठा ॥ सत्य को || ७- झूठ || ८- पिघलता है ॥ १२-२० ॥ १३ - खींचे ॥। १४ टूटे || १५ कच्चा || १६ - खींचते खींचने १८- वृत ॥ १९ - समय के अनुकूल २०-सदा ॥ २१ द्रव्य २३ आना ॥ २४ और || २५घर ॥ २६- दुष्ट || २७ - साहूकार ॥ ३०-स्त्री ॥ ३१-वन्दर || ३२-बालक ॥ ३३ राजा ३६ होशियार ।।
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२७ निः र, दयाहीन ॥ ३५ - हे अच्छे मित्र ॥
३७ - विश्वास ॥
३८- मुहब्बत ||
४१ - वहां ॥ ४६-- निभता है ।।
४२ - पडदा
४३ - जरा भी ॥ ४७- आखिर में || ४८ पल
४४- उचित भर भी ।।
४०-पैदा हुआ || ४५ - विचार ॥ ५० दूर रे के ।। समान ॥ ५५ - गर जता है । ५१- जीभ ॥ ६१-फः ॥ ६२ - हवा || ६३ - साफ, उज्ज्वल || ६४- अगर ॥ ६५ - मिटकर ॥ है || ७- परन्तु ॥ ६८- कमजोर || ६९ - सुख ही ॥ ७० - मूलसहित || ७१ - चला जाता है ॥ ०२ - करो ॥ ७३ - पाओ ।। ७४ - और ॥ ७५-कभी ॥ ७६ - बिचारा, दीन ॥ ७७होने पर ॥ ७८- सम्पत्ति, एकता ॥ ७९ - उत्पन्न होता है ॥ ८०- गुणों का ॥। ८१ स्थान ॥ ८२ - हिम्मत || ८३ - बहादुरी ॥ ८४ - अक्कु ॥ ८५ - ताकत ॥ ८६ - पुरुषार्थ, मेहनत ॥ ८७धीरज ॥। ८८-देव भी ।। ८९ - मक्खी ॥
॥
५१ - मिटाता है
५३ - बादल ५६ - वह || ५७ - परखा जाता ।। ५८- सब
५२-जो ॥
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आती है ॥ ६
११- पिघलता है ।
१७ टूट जाता है ।
२२- अहंता ॥
२८- अत्यन्त ॥
३४ - स्थिर ॥
३९ - सचाई ॥
और अनुचित ॥
४९ - होने पर ||
२४ व्यर्थ में ||
६० - अमृत ॥ ६६-होता
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