Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
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था, वह पति के हित के लिये दूसरे के घर बिकी, पति का वियोग हुआ, बहुत से दुःख भोगे और ऐसी अवस्था में भी सन्तोष के एकमात्र आधार एकलौते पुत्र का मरण हुआ, उस को जलाने के लिये मसान का भाड़ा देने योग्य भी कुछ पास नहीं रहा, ऐसी महादुःखदायिनी दशा के आ पड़ने पर भी उस वीरांगना ने अपने पति पर से ज़रा भी प्रेम कम नहीं किया और अपना शील भंग नहीं किया, अन्त में पति के हाथ से ही मरने का समय आया तब भी ज़रा भी न घबड़ा के पूर्ण प्रेम प्रकट कर बोली कि " हे प्राणनाथ ! आप के हाथ से मेरे गले में डाली हुई यह तलवार मुझ को मोती की माला के समान लगेगी, इस लिये आप कुछ भी चिन्तातुर न हो कर शीघ्र ही यह काम करो". वाह धन्य है ! यह कैसा अद्भुत प्रेम है !! धन्य है इस पतिप्राणा स्त्री को जिस ने स्वामिभक्ति में ही अपने जीवन को भी प्रदान कर सुकीर्ति प्राप्त की, इसी प्रकार से अन्य भी बहुत सी साध्वी स्त्रियों ने अपने पति की प्राणरक्षा के लिये अपने जीवन को तुच्छ जान कर अपने प्राण दिये हैं अर्थात् अपने पति की प्राणरक्षा के लिये अनेक वीरांगनायें युद्धाग्नि में अपने जीवन को आहुत कर चुकी हैं और प्राण जाने के समय तक पति पर अखण्ड प्रेम रख कर अपने शील का परिपालन दिखा गई हैं, जब यह बात है तो पति के वचनों का पालन करने में अनेक दुःखों का सहन करना तो सती स्त्रियों के लिये एक साधारण बात है, इस के सहस्रों उदाहरण प्राचीन स्त्रियों के चरित्र पढ़ने से अवगत ( ज्ञात ) हो सकते हैं ।
सत्य तो यह है कि - जिस स्त्री में विश्वासपात्रता और पतिसम्बन्धी निर्मल प्रेम न हो उसको स्त्री का नाम देना ही समुचित नहीं है, क्योंकि- स्त्री वही है जो पति को देवरूप समझ के अन्तःकरण से उस को चाहती हो तथा उसी को अपना स्वामी, नाथ, वल्लभ और प्राणाधार समझती हो तथा जीवनपर्यन्त भी उस की सेवा से उऋण न हो सकने का विचार जिस के अन्तःकरण में हो, क्योंकि जो स्त्री अपने पति के उपकारों का स्मरण न कर पति के साथ निमकहरामी करके उस के वचनों को तोड़ती है वह इस लोक और पर लोक में महादुःखिनी होती है, क्योंकि अनादि काल के कुदरती नियम को तोड़ने से उस को दुःखरूप फल भोगना ही पड़ता है |
स्त्रियों के लिये पति ईश्वर के तुल्य है चाहे वह किसी दशा में तथा किसी भी स्थिति में क्यों न हो, क्योंकि स्त्री ने अपनी राजी खुशी से और अक्ल तथा होशियारी से बहुत से मनुष्यों के समक्ष में प्रण ( वचन ) दिया है और मा बाप
भी जिस के हाथ में उस का हाथ सौंपा है उस पति की सदा आज्ञा का पालन करना स्त्री का प्रथम कर्तव्य है, इस लिये जो स्त्री अच्छे प्रकार से विश्वासपात्रता के साथ अपने वचन के पालन करने का प्रयत्न करती है उस को कुदरती नियम के अनुसार निरन्तर सुख प्राप्त होता है, देखो किसी का वाक्य है :
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