Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
ही अफ़सोस की बात है, क्योंकि केवल शरीर के अल्प सुख के लिये अपना अकल्याण करना, कुदरती नियम को तोड़ कर पतिकी अप्रिय बनकर अपराधका भार अपने शिरपर रखना तथा लोगोंमें निंदापात्र बनना बहुत ही खराब है, देखो । मोती का पानी और मनुष्य का पानी नष्ट हो जाने पर फिर पीछे नहीं आसकता है, इस लिये समझदार स्त्रियों को उचित है कि-अपने जीवन के सुखके मुख्य पाये रूप प्रेम को पति के संयोग और वियोगमें भी एक सरीखा और अखण्ड रक्खे, पतिके विदेश से वापिस आने तक पतिव्रता के नियमों का पालन कर सदाचरण में वर्ताव करे, क्योंकि-इस प्रकार चलनेसे ही पतिपत्नी में अखण्ड प्रेम रह सकता है और अखंड प्रेम का रहना ही उन के लिये सर्वथा और सर्वदा सुखदायक है।
यह तृतीय अध्याय का-स्त्री पुरुषधर्म नामक प्रथम प्रकरण समाप्त हुआ ।
दूसरा प्रकरण । रजोदर्शन-अर्थात् स्त्रीका ऋतुमती होना। रजोदर्शन-स्त्री का कन्या भाव से निकल कर स्त्री-अवस्था (तरुणावस्था) में आने का चिह्न है, यह रजोदर्शन स्त्री के गर्भाशयसे प्रतिमास नियमित समय पर होता है और यह एक प्रकार का रक्तस्राव है, इसीलिये इसको रक्तस्राव, ऋतुस्राव, अधोवेशन, मासिकधर्म, पुष्पभाव और ऋतुसमय आदि भी कहते हैं ।
रजोदर्शनसे होनेवाला शरीर में फेरफार । ऋतुस्राव होने के समय स्त्री का शरीर गोल और भरा हुआ मालूम होता है, शरीर के भिन्न २ भागों में चरबी की वृद्धि हो जाती है, उस के मनकी शक्ति बढ़ती है, शरीर के भाग स्थूल हो जाते हैं, स्तन मोटे तथा पुष्ट हो जाते हैं, कमर स्थूल हो जाती है, मुख और चेहरा जासूस रंगका दिखलाई देने लगता है, आंखें विशेष चपल हो जाती हैं, व्यवहार आदि में लज्जा ( शर्म) हो जाती है, सन्तती (पुत्र पुत्री) के उत्पन्न करने की योग्यता जान पड़ती है और स्वाभाविक नियम के अनुसार जिस काम के करने के लिये वह मानी गई है उस कार्यका उसको ज्ञान होगया है. यह बात उस के चेहरे से मालूम होती है, इत्यादि फेरफार ऋतुस्राव के समय स्त्री के शरीरमें होता है।
रजोदर्शन होनेका समय। रजोदर्शन के शीघ्र अथवा विलम्ब से आने का मुख्य आधार हवा और संगति है, देखो । इंग्लेंड, जर्मनी, फ्रांस, रशिया, यूरुप और एशिया खण्ड के शीत देशोंकी बालाओंके यह ऋतु धर्म प्रायः १९ वे अथवा २० वें वर्षमें होता है.
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