Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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तृतीय अध्याय ।
रजोदर्शन ने आन के कारण ।
बहुत सुख में जीवन का काटना, तमाम दिन बैठे रहना, उत्तम सरस स्वादिष्ट तथा अधिक भोजन का करना, खुली हवा में चलने फिरने का अभ्यास न रखना, बहुत नींद लेना, मन में भय और चिन्ता का रखना, क्रोध करना, तेज हवा में तथ भीगे हुए स्थान में रहना, शरदी का लग जाना और किसी कारण से निर्बलता का उत्पन्न होना आदि कई कारणों से यह रोग उत्पन्न हो जाता है, इस लिने इस रोगवाली स्त्री को चाहिये कि किसी बुद्धिमान् और चतुर वैद्य अथवा की सम्मति से इस भयंकर रोग को शीघ्रही दूर करे I
रजोदर्शन के बन्द करने से हानि ।
बहुत सी स्त्रियां विवाह आदि उत्सवों में शामिल होने की इच्छा से अथवा अन्य किन्हीं कारणों से कुछ ओषधि खाकर अथवा ओषधि लगा कर ऋतुस्राव को बन्द कर देती हैं अथवा ऐसी दवा खा लेती हैं कि जिस से ऋतुधर्म बिलकुछ ही बंद हो जाता है, इस प्रकार रजोदर्शन के बन्द कर देने से गर्भस्थान में अथवा दूसरे गुप्त भागों में शोथ ( सूजन ) हो जाता है, अथवा अन्य कोई दुःखदायक रोग उत्पन्न हो जाता है, इस प्रकार कुदरत के नियम को तोड़ने से इस का दण्ड जीवनपर्यन्त भोगना पड़ता है, इस लिये रजोदर्शन को बन्द करने की कोई ओषधि आदि भूल कर के भी कभी नहीं करनी चाहिये, यह तो अपना समय पूर्ण होने पर कुदरती नियम से आप ही बन्द हो यही उत्तम है, क्योंकि इसको रोक देने से यह भीतर ही रह कर शरीर में अनेक प्रकार की खरावियां पैदा कर बहुत हानि पहुँचाता है ।
रजोदर्शन के समय स्त्री का कर्तव्य ।
स्त्री को जब ऋतुधर्म प्राप्त हो तब उसे अपनी इस प्रकार से सम्भाल करनी च हिये कि-जिस प्रकार से जखमी अथवा दर्दवाले की संभाल की जाती है।
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रजस्वला स्त्री को खुराक बहुत ही सादी और हलकी खानी चाहिये क्योंकि खुराक की फेरफार का प्रभाव ऋतुधर्म पर बहुत ही हुआ करता है, शीतल भोजन औ वायु का सेवन रजस्वला स्त्री को नहीं करना चाहिये क्योंकि शीतल भोजन औ" वायु के सेवन से उदर की वृद्धि और अजीर्ण रोग हो जाता है जो कि सब रोगों का मूल है, एवं गर्म और मसालेदार खुराक भी नहीं खानी चाहिये क्योंकि इस से शरीर में दाह उत्पन्न हो जाता है, बहुत सी अज्ञान स्त्रियां ऋतुधर्म के समय अपनी अज्ञानता से उद्धृत ( उन्मत्त ) होकर छाछ, दही, नींबू, इमली औ कोकम आदि खट्टी वस्तुओं को तथा खांड़ आदि हानिकारक वस्तुओं को खा लेती हैं कि जिस से रजोदर्शन बन्द होकर उन को ज्वर चढ़ जाता है, मस्तक और पीट के सब हाड़ों में दर्द होने लगता है तथा किसी २ समय पेट में ऐंठन ( खेंच
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