Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
फूल ॥ 'दीसंता रलियामणां, पण नहिं पामे मूल ॥ २६४ ॥ 'शेरी मित्रह सौ गुणा, ताली मित्र अनेक ॥ (पण ) जेथी सुख दुख 'ह्वेचिये, सो लाखन में एक ॥ २६५ ॥ नाम रहण दो ठक्करां, नाणां नहीं रहन्त ।। कीरंत हन्दी कोटड़ा, पौड्यां नहीं पड़न्त ॥ २६६ ॥ कल्पवृक्ष काने सुण्यो, ऑपे इच्छिते भोग ॥ म्हे मन में निश्चय कर्ये, कल्पवृक्ष उद्योग ॥ २६७ ॥ उपजे सुख उद्योग थी, सुधरे वली स्वदेश ॥ ते कारण उद्योग की, हिम्मत धरो हमेश ॥ २६८ ॥ कुदरत पिणे उद्योगि ने, देवे वक्षिस दान ॥ आ अवसर यूरोप ना, लोकेज चड़े विमान ॥२६९॥ आलस भंडी भूतडी, व्यन्तर नो वल गाढ़ ॥ पेसे" जेना पं.मां, बहुधा करे विगाड़ ॥ २७० ॥ जन आलस ना जखमें थी, जे कोइ जखमी थायं ॥ पड़े पारी पाथरी, जीवन रहित जोय ॥ २७१ ॥ भर्यो घड़ो छिलके नहीं, अधुरो झट छिलकाय ॥ विबुध कुलीन बकैं नहीं, बके सो नीच बलीय ॥ २७२ ॥ सुख पीछे दुख आत हैं, दुख पीछे सुख आत ॥ आवत जावत अनुक्रमे, ज्यूं जग में दिन रात ॥ २७३ ॥ केशरिकेशै भुजंगमणि, सुरनौरी शूराह ॥ सतीपयोधर विप्रधन, चंद्रशे हथ मुवाह ॥ २७४ ॥ दुष्ट व्यसन दुखेद सदा, कैदी न करबो संग ॥ धन जीवन यश धर्म नो, तुरत करे छे भंग ॥ २०५॥ भूख न वासी घाट अरु, नींद न तूंटी खाँट ॥ कामी जात कुजति नहि, देखे रात कि प्रांत ॥ २७६ ॥ रसिक संग में रसिक जन, अति पामें आनंद ॥ अरसिक साथे अहर्निश, पामै खेद अमन्द ॥ ॥ २७७ ॥ बड़े बड़े कू देखि के, लघु न दीजिये डार ॥ काम पड़े जब सूचि को, कहा करे तलवार ॥ २७८ ॥ जो मति पीछे ऊपजै, सो मति पहिले होय ॥ काला न बिगड़े आपनो, जग में हँसे न कोय ॥ २७९ ॥ भोग्यहीन कूँ ना मिले, भल वस्तु को भोग ॥ दाख पके मुंखपाकवो, होत काँग कूँ रोग ॥२८० ॥ करिये काम
१-देखने में ।। २-अच्छा लगता है ।। ३-परन्तु ॥ ४-उत्तम समय में ॥ ५-बटाइये । ६-हे ठाकुर ।। ७-धन ।। ८-रहता है ॥ ९-कीर्ति, यश ॥ १०-रूपी ।। ११-किला। १२-गिराने से ॥ १३-गिरता है।। १४-देता है॥ १५-चाहा हुआ! १६-मैने। १७
और ।। १८-अपना देश ।। १९-भी ।। २०-समय ॥ २१-मनुष्य ही॥ २२-खराव ।। २३-भूतिनी॥ २४-भूत घुसता है॥ २५-जिसके।। २६-हृदयमें ।। २७-अक्सर ।। २८घाव ।। २९-घायल।। ३०-होता है ॥ ३१-बिछौना ।। ३२-बिछाकर ।। ३३-मालूम होता है ।। ३४-छलकता है ।। ३५-अधुरा, अपूर्ण ।। ३६-छलकता है ।। ३७-पण्डित ।। ३८-अच्छे कुल का ।। ३९-दुःख में डालनेवाला ॥ ४०-क्रम से ॥ ४१-सिंह के बाल ।। ४२-सांप की मणि ।। ४३-देवांगना ।। ४४-शर का शस्त्र ॥ ४५-पतिव्रता का स्तन।। ४६-ब्राह्मण का धन ।। ४७चढ़ेगा, आवेगा॥ ४८-हाथ में ॥ ४९-मरने पर ही ॥ ५०-खराब आदत ॥ ५१-दुःख देने वाला। ५२-कभी ।। ५३ करना चाहिये ॥ ५४-नाश ॥ ५५-आंटे की राबड़ी (जो मारवाड़ में मटे में वनई जाती है) ॥ ५६-टूटी हुई ॥ ५७-चारपाई ॥ ५८-खराब जाति ॥ ५९-सबेरा ।। ६०-शौकीन ।। ६१-वेशौकीन ।। ६२-दिनरात ।। ६३-दुःख, रज ।। ६४-बहुत ।। ६५-छोटा ।। ६६-सुई।। ६७-क्या ॥ ६८-अक्कु ॥ ६९-भाग्य से रहित।। ७०-मुख का पकजाना।। ७१-कोआ॥
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