Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा । गाड़ी लीक न दीसवै, घाणी तेल न थायें । कांटो लागो पांव में, कहु चेला किण दाय ॥ ३८ ॥
गुरुजी जोड़ी नहीं ॥ गुटमण गुटमण फिरतो दीठो, कोइ जोगी होयगो ॥ ना गुरु जी सूत लपेट्यो, कोइ ताणो तर्णतो होयगो । ना गुरु जी मुख लोहा जैड़ियो, कोइ 'सोनू तायो होयगो॥ ना गुरु जी पकड़ पछाड्यो, बेलो बंधग्यो ऐ गाहै रो॥ अरथ कहो तो तुम गुरु हम चेलो ॥ ३९ ॥
इति चेला गुरु प्रश्नोत्तरं समाप्तम् ॥ यह द्वितीय अध्याय का चेलागुरु प्रश्नोत्तरनामक तीसरा प्रकरण समाप्त हुआ। इति श्रीजैन श्वेताम्बर धर्मोपदेशक, यतिप्राणाचार्य, विवेकलब्धिशिष्य शीलसौभाग्यनिर्मितः-जैनसम्प्रदायशिक्षायाः
द्वितीयोऽध्यायः॥
१-लकीर, पंक्ति ॥ २-दीखती है ।। ३-तेली की धाणी ॥ ४-होता है। । (दो में) और जूतों की जोड़ी॥ ६-भनभनाता हुआ ॥ ७-देखा ॥ --होगा ।। ९-नहीं ।। १०-लपेटा हुआ ॥ ११-बुनना ॥ १२-बुनता हुआ ।। १३-जड़ा हुआ || . १४-सोना ॥ १५-तषाया ॥ १६-गिरा दिया ॥ १७-जल्दी ।। १८-बढ़ गया ॥ १९गाथा छन्द ॥ २०-मतलब ॥ २१-इन दोहों का मारबाड़ देश में अधिक प्रचार देखा जाता है और बहुत से भोले लोगों का ऐसा ख्याल है कि किसी गुरु तथा चेले के आपस में यह प्रश्नोत्तर हुआ है और इस में चेला गुरु से जीत गया है, परन्तु यह बात सत्य नहीं है- किन्तु यथार्थ बात यह है कि- ये चेलागुरुप्रश्नोत्तररूप दोहे-किसी मारवाड़ी कवि ने अपनी बुद्धि के अनुसार डिंगल कविता में बनाये हैं, यद्यपि इन दोहों की कविता ठीक नहीं है- तथापि इन में यह चातुर्य है कि तीन प्रश्नों का उत्तर एक ही वाक्य में दिया है और इन का प्रचार मरुस्थल में अधिक है अर्थात किसी परुष को एक दोहा याद है. किसी को पांच दोहे याह हैं, किन्तु ये दोहे इकट्ठे कहीं नहीं मिलते थे, इसलिये अनेक सज्जनों के अनुरोध से इन दोहों का अन्वेषण कर उल्लेख किया है अर्थात् बीकानेर के जैनहितवल्लभ ज्ञानमंडार में ये ३९ दोहे प्राप्त हुए थे सो यहां ये लिखे गये हैं- तथा यथाशक्य इन का संशोधन भी कर दिया है और अर्थज्ञान के लिये अंक देकर शब्दों का भावार्थ भी लिख दिया है।
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