Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
में, रहै न मोठी बात ॥ आधसेर के पात्र में, कैसे सेर समात ॥ १८७ ॥ गृढ़ मंत्र तब तक रहत, होत जु मिलि जन दोय ॥ भई छकन्नी बात जब, जान जात सब कोय ॥ १८८ ॥ गूढ़ मन्त्र गेरुए विना, कोऊ राखि सके न ॥ धात पात्र विन हेम के, बाधनि दूध रहै न ॥ १८९ ॥ जो प्राणी परवंश परयो, सो दुख लहै अपार ॥ जूथ विछोहो गज सहै, बन्धन अंकुश मार ॥ १९० ॥ मन प्रसन्न तन चैन जिहि, स्वेच्छाचार विहार ॥ संग मृगी मृग सुख सुव, वन बसि तृन आहार ॥ १९१॥ उदर भरन के कारने, प्राणी करत इलाज ॥ बाच नाचै रण भिडे, रोचै काज अाजै ॥ १९२ ॥ काहू को हँसियै नहीं, हँसी कलह को मूल ॥ हांसि हँसे दोऊ भये, कौरव पाण्डु निमूल ॥ १९३ ॥ प्रोपति के दिन होत है, प्रापति वारंवार ।। लाभ होत व्यापार में, आमन्त्रण अधिकार ॥ १९४ ॥ अप्रापति के दिनन में, खर्च होत अविचार ॥ घर आवत हैं पाहुने, वणिजैन लाभ लिंगार ॥ १९५॥ दीन धनी आधीन है, सीस नौवत काहि ॥ मानभंग की भूमि" यह, पेट दिखावा नाहि ॥ १९६ ॥ कहैं वचन पैलटें नहीं, जे सउपुरुर्षे संधीर ॥ कहत सबै हरिचन्ः नृप', भयो नीच घर नीर ॥ १९७ ॥ प्यारी अनप्योरी लगै, समय वाय सव वात ।। धूप सुहावत शीत में, ग्रीपम नाहिं सुहात ॥ १९८ ॥ जूवा खेले होत है, सुख सम्पति को नाश ॥ राजकाज नल तें छुट्यो, पाण्डव किय वनवास ॥ १९९ । सरस्वति के भण्डार की, बड़ी अपूर्वं बात ॥ ज्यों खरचै त्यों त्यों बड़े, विन खरचे घटि जात ॥ २०० ॥ देखादेखी करत सब, नाहिने तत्त्वविचार ॥ याको यह उनमान है, भेड़ चाल संसार ॥ २०१॥ खरचत खात न जात धन, औसर किये अनेक ॥ जात पुन्य पूरन भये, अरु उपजै अविवेक ॥ २०२ ॥ एक एक अक्षर पढ़े, जान ग्रन्थ विचार ॥ पैं. पेंड हू चलत जो, पहुँचै कोस हजार ॥ २०३ ॥ लिखी दूरि नहिं होत है, यह जानो तहकीक ॥ मिट न ज्यों क्यों हूँ किये, ज्यों हाथन की लीक ॥२०४॥ चिदानन्द घंट में वसै, बूझत कहा निवास ॥ ज्यों मृगमद
१-वर्तन ॥ २-गुप्त, छिपा हुआ ॥ ३-सलाह ॥ ४-छःकान की अर्थात् तीन मनुष्यों में । ५-बड़ा आदमी ॥ ६-सोना चांदी आदि धातु ।। ७-वर्तन ॥ ८-सोना ।। ९-पराधीन ।। १०-पाता है ॥ ११-झुंड ॥ १२-छूटा हुआ ॥ १३-अंकुश ॥ १४-खुशी ॥ १५ अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार ।। १६-चलना, फिरना ॥ १७-सोता है ।। १८-पेट ॥ १९-लड़ाई में ॥ २० लड़ता है ॥ २१-कर बैठता है ॥ २२ करने योग्य काम ॥ २३-न करने योग्य काम ॥ २४-लड़ाई ॥ २५-कारण ॥ २६-आमदनी ॥ २३-बुलावा ।। २८-इखत्यार ।। २९-आमदनी का न होना ॥ ३०-विना विचारे॥ ३१-मेहमान ॥ ३२ व्यापार ।। ३३-जरा भी॥ ३४-होकर ।। ३५-झकाता है।। ३६-प्रतिष्ठा का नाश ॥ ३७-स्थान ।। ३८-बदलते हैं ॥ ३९-अच्छे आदमी॥ ४०-धीरज वाले॥ ४१-राजा॥ ४२-बेप्यारी. बरी॥ ४३-ठंढ ऋतु ।। ४४-गर्मी ।। ४५-अच्छी लगती है ।। ४६-दौलत ॥ ४७-विद्या ।। ४८खजाना ॥ ४९-अद्भुत, विचित्र ॥ ५०-नहीं ॥ ५१-अनुमान ॥ ५२-अज्ञान ।। ५३-एक एक पर भी ॥ ५४-निश्चय ॥ ५५-शान और आनन्द से युक्त अर्थात् भगवान् ।। ५६-हदय ।। ५७ कस्तूरी ।।
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