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जैन साहित्य और इतिहास
कुन्दके बादके दूसरे ही आचार्य हों और जिस तरह कुन्दकुन्द कोण्डकुण्डपुरके थे, उसी तरह पद्मनन्दि भी कोण्डकुण्डपुर के हों ।
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गुरु-परम्परा
भगवान वीरके निर्वाणके बादकी गुरुपरम्परा और काल-गणना जो तिलोयपष्णत्तिमें दी है वह आगे उद्धृत की जाती है -
जादो सिद्धो वीरो तद्दिवसे गोदमो परमणाणी । जादे तस्सि सिद्धे सुधम्मसामी तदो जादो ॥ ६६ तंमि कदकम्मणासे जंबूसामि ति केवली जादो । तत्थ वि सिद्धिपवणे केवलिणो णत्थि अणुवद्धा || ६७ बासो वासाणि गोदमपहुदीण णाणवंताणं ।
धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूवेण ॥ ६८
अर्थ - जिस दिन श्रीवीर भगवान्का मोक्ष हुआ, उसी दिन गौतम गणधरको परम ज्ञान या केवल-ज्ञान हुआ और उनके सिद्ध होने पर सुधर्मा स्वामी' केवली हुए । उनके कृत कर्मों के नाश कर चुकने पर जम्बू केवली हुए । उनके बाद कोई केवली नहीं हुआ । इन गोतम आदि केवलियों के धर्म प्रवर्तनका एकत्रित समय ६२ वर्ष है |
कुंडलगिरम्मि चरिमो केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो । चारणरिसीसु चरिमो सुपासचंदाहिधाणो य ॥ ६९ पण्णसमणेसु चरिमो वइरजसो णाम ओहिणाणीस ॥ चरिमो सिरिणामो सुदविणयसुसीलादिसंपण्णो ॥ ७० मउडधरेसुं चरिमो जिणदिक्खं धरदि चंदगुत्तो य । तत्तो मउडधरादो पव्वजं णेव गेति ॥ ७९
अर्थ —केवल ज्ञानियोंमें सबसे अन्तिम श्रीधरे हुए जो कुंडलगिरिसे मुक्त और चारण ऋद्धिके धारक ऋषियों में सबसे अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र हुए । इसी
हुए
१ सुधर्मा स्वामीका ही दूसरा नाम लोहार्य था ।
२ भगवान् महावीरके बाद केवल तीन ही केवलज्ञानी हुए हैं, जिनमें जम्बूस्वामी अंतिम थे । ऐसी दशा में यह समझमें नहीं आता कि यहाँ श्रीधरको क्यों अंतिम केवली बतलाया और ये कौन थे तथा कब हुए हैं। शायद ये अन्तःकृत केवली हों ।