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गुजरात देशके सूरत शहरका दिग्दर्शन । [४७ कने अपने खास पढ़नेके लिये संवत् १७४३ चैत्र सुदी १४ रविके दिन श्रीवन्धपुर ( यह कौन नगर है सो इसमें नहीं आया ) के श्रीआदिनाथ चैत्यालयमें लिखवाया था । इस गुटकेके देखनेसे विदित होता है ये सुरेन्द्रकीर्ति विद्वान् थे क्योंकि इसमें प्राकृत संस्कृतकी निम्न भक्तियां हैं-सिद्धभक्ति, श्रुतज्ञानभक्ति, दर्शनभक्ति, चारित्रभक्ति, वीरभक्ति, २४ तीर्थकरभक्ति, चत्त्यभक्ति, वृहद स्वयंभू, पंचमहागुरुभक्ति, शांतिभक्ति, ३४ अतिशयभक्ति, नंदीश्वरभक्ति, समाधिभक्ति, योगभक्ति, निर्वाणभक्ति, अय्यु आलोचनाभक्ति, वृहदालोचनाभक्ति, इनके सिवाय तत्वार्थ सूत्र, ऋषिमंडल, अष्टान्हिका वीनती, आराधनप्रतिबोध, गुर्वावली, वृ.दीक्षा विधिय प्रतिष्ठा विधि है, यह गुटका २७९ पत्रोंका है। इसके २ ३१ में गुर्वावली है। इसके १९ श्लोकसे काष्ठ · का वर्णन इस भांति है कि इस काष्ठासंघके ४ गच्छ हैं-नंदील, माथुर, बागड़ और लाडवागड़। सो यहां नंदीतट गच्छकी गुर्वावली कही जाती है । सो नीचेके क्रमसे नाम हैं१ अर्हदगलभसूरि ४ नागसेन - ७ नोपसेन २ श्रीपंचगुरु ५ सिद्धान्तसेन ८ रामसेन ३ गंगसेन
६ गोपसेन रामसेनके सम्बन्धमें लिखा है कि इन्होंने नारसिंह नामकी जाति स्थापित की। ___ रामसेनोति विदितः प्रतिबोधनपंडितः । स्थापिता येन सज्जातिनरिसिंहाभिधा भुवि ॥२४॥
इससे पता चलता है कि जो ८४ जातियां जैनियोंमें प्रसिद्ध हैं वे प्रायः पंचम कालके मुनि व भट्टारकोंके द्वारा किसी २ खास
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