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भरतेश वैभव
वनके समान है, सौन्दर्य सुन्दर जल भरे तालाब व नदियोंके समान है, भावाजी ! अब खूब वनक्रीडा व जलक्रीडासे अपने संतापको ठंडा करो। ये सब बचन आपको अच्छे लगते होंगे, परंतु एक बात और है । मेरी बहिनके मुखमें एक मधुका घड़ा भरा हुआ है। वह अत्यंत मीठा है, परंतु भावाजी ! उसका स्वाद आप कैसे ले सकते हैं, आप तो जैन हैं न? ___ भरतेश तोतेकी वात सूनकर जरा हँसे परंतु उन्होंने यह जान लिया कि यह इस तोतेकी चतुरता नहीं है। इसको किसीने सिखाया है। सिखानेवाला कौन है ? कुसुमाजीकी बहिन मकरंदजीका ही यह कार्य है। उसीने यह तंत्र रचा है, ऐसा मनमें विचार कर वे उसपर प्रसन्न हुए। ___मकरंदाजीको आलिंगन देकर अपने संतोषको व्यक्त करूँ, यह इच्छा भरतेश्वरको उत्पन्न हई। परंतु वह पास में आवे कैसे? इसके उपाय सोचकर भरतेश कहने लगे देवी ! तोतेकी वाक्चातुर्यसे मैं प्रसन्न हो गया हूँ । जरा उसे मेरे पासमें तो ले आवो ! ___इस बातको सुनकर मकरंदाजी तोतेका लेकर मरतेशक पास गई
और जिस समय उनके हाथ में वह तोतेको दे रही थी। उस समय भरतेशने एकदम उसे पकड़ लिया व आलिंगन दिया ।।
मकरंदाजी लज्जाके मारे मुंह छिपाकर इधर-उधर भागने की कोशिश करने लगी, परन्तु भरतेशने उसे जोरसे पकड़ रखा था । उन्होंने एक चुम्बन देकर उसे छोड़ दिया और कहा कि देवी ! मैं तुमसे प्रसन्न हो गया हूँ।
तब रानी कुसुमाजी पूछने लगी कि स्वामिन् ! आप बहिनके ऊपर इस प्रकार इतने शीघ्र प्रसन्न क्यों हो गये ?
कुसुमाजी ! रहने दो ! तुम लोगोंका सब कुछ तन्त्र मैं जानता हूँ। क्या तुम नहीं जानती हो ? आज इस तोतेने जो नई बात बोली है, उसमें मकरंदाजीका हाथ है । क्या उसने उसे नहीं सिखाया है ? बोलो तो सही । इसलिए मैं उसकी बुद्धिमत्तापर प्रसन्न हो गया हूँ। अतएव उस प्रसन्नतासे उसे आलिंगन देकर छोड़ा है । और कोई बात नहीं।
तब कुसुमाजी रानी बहिन मकरन्दाजीसे कहने लगी कि बहिन देख लिया न ? मैंने उसी समय तुम्हें कहा था कि यह काम तुम मत करो। हमारे पतिदेव हवाकी चालको भी पहिचाननेवाले हैं । उनके