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भरतेश वैभव अथ मदनसन्नाह संधि
सेनाके समाचारको सुनकर बाहुबलिके मनमें कुछ विचार तो हुआ, फिर भी के कारण युद्धकी ही तैयारी में लगा । भरतेश्वरकी छोटीसी उँगली शक्तिको सुनकर ही बाहुबलिको समझना चाहिए था, परन्तु विधि विचित्र है, कर्म कैसे छोड़ सकता है ? आगे इसी निमित्तसे दीक्षा ग्रहण करने की भावीकी कैसे पूर्ति होगी ? भरतेशकी षट्खण्ड विजयी होकर लौटनेपर आपसमें बाहुबलि और भरतेश्वरका युद्ध होना चाहिये। बाहुबलिको वैराग्य उत्पन्न होना चाहिये । वैभवयुक्त भोगको छोड़कर जंगलमें जाना चाहिये इस विधिविलासको कौन उत्पन कर सकता है? है। बहुबलिने गणवसन्तक नामक सेनापतिको बुलाया व कहा कि जाओ ! सब तैयारी करो । सेना, परिवार वगैरह की सिद्धता कर युद्ध सन्नद्ध रहो । चक्रवर्तीने अपने नगर के पास पड़ाव डाल रखा है, यह अपने लिये अपमानकी बात है। इसे अपने कैसे सहन कर सकते हैं ? मैं अभी महलमें जाकर आता हूँ तुम तैयार रहो ।
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सुनन्दादेवीको मालूम होते ही उसने पुत्रको बुलवाया, बाहुबलिने भी संतोष व विनयके साथ मातुश्रीके चरणोंमें नमस्कार किया । सुनन्दादेवीने आशीर्वाद देते हुए कहा कि "भुजबली ! बड़े भाई भरतेश के साथ युद्धकी तैयारी कर रहे हो ऐसा मालूम हुआ है। इसे कौन सज्जन पुरुष पसंद करेंगे ? तुम्हारे दुर्भागंके लिये धिक्कार हो । भरतेश सरीखे बड़े भाईको पानेका भाग्य लोकमें किसे मिल सकता है ? संतोष व प्रेमसे तुम उसके साथ रहना नहीं जानते, जाबो अभागे हो । छोटे भाईका कर्तव्य है कि जो लोग बड़े भाईके साथ विरोध करते हैं उनको पकड़कर लावें या बड़े भाईके आधीन कर देवें । परन्तु तुम तो उसके साथ ही विरोध करते हो ? क्या यह बुद्धिमत्ता है ? छोटे भाई बड़े भाईको नमस्कार करें यह लोककी रीत है । वह चक्रवर्ती है, तुम कामदेव हो । यदि तुम उसे उल्लंघन न कर चलोगे तो शुक्र, बृहस्पति भी तुम्हारी प्रशंसा करेंगे। तुमने विरोध करोगे तो तुम्हारी निन्दा करेंगे। विशेष क्या ? तुम्हारे इस व्यवहारसे हमें व हमारे सभी बांधवोंको अत्यन्त दुःख होगा । कुमारने जवान होकर कुटुम्बके हृदयको दुखाया, यह अविवेक तुम्हारे लिए योग्य है ? भाईके साथ युद्ध करनेके लिए मैंने तुम्हें घी-दूधसे पालन-पोषण किया था ? इस लिए हमारे हृदयको संतुष्ट करना तुम्हारा कर्तव्य है । तुम अकेले नहीं