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भरतेश वैभव
४०३ तुम नष्ट होते हो, जाओ ! मैं घास लेकर प्रतिज्ञा कर बोलती हूँ, जाइये नाथ ! जाइये ! आखिरका समय आ गया है ।" इस प्रकार अत्यधिक वेपरवाहीसे रतिदेवी बोल रही थी। परन्तु पदरानीको यह बात पसंद नहीं आई। कहने लगी कि हे धूर्ता ! चुप रहो ! पतिदेवके हृदय को हा प्रकार सन ठीक नहीं । उत्तर में सिवी कहने लगी कि जब उन्होंने मार्गको छोड़ा तो हमारी इच्छा जो होगी सो वोलूंगी।
इसी प्रकार अन्य स्त्रियोंने भी अनेक प्रकारसे पतिको समझातकी कोशिश की। बाहुबलि मौनसे सुन रहे हैं। मनमें विचार कर रहे है कि चक्रवर्तीका पुण्य तेज है, इसलिए मेरी स्त्रियाँ भी उसी की स्तुति कर रही हैं। कोई हर्ज नहीं। इनको भी बातोंमें फंसाकर जाना चाहिए । प्रकट होकर बोले कि देवियों ! आप लोग बोली सो अच्छा हुआ । तुम लोगोंकी इच्छाको पूर्ण करूंगा। आप लोगोंको कभी दुःख नहीं पहुंचाऊंगा। पहिले मेरे हृदयमें क्रोध जरूर था, परन्तु आप लोगोंकी वातें सुनकर अब क्रोध नहीं रहा, अब वह शान्त हुआ है। मैं बहुत नम्रतामे भाई को नमस्कार कर आऊँगा। रति ! तुम बहुत अच्छा बोली, मेरे हित के लिए कठोर वचनको बोली, बहुत अच्छा हुआ। उत्तरमें रतिदेवी कहने लगी कि सचमुचमें आप बुद्धिमान हैं, नहीं तो ऐसी बातोंको अपने हितके लिए समझनेवाले कौन हैं ? इस प्रकार सर्व स्त्रियोंको वाहुबलिकी बात सुनकर हर्ष हुआ । सबने हर्षातिरेकसे तिलक लगाया । बाहुबलि वहाँसे निकलकर अपनी महलकी ओर आये । दरवाजेपर सेवक परिवार वगैरह तैयार खड़े हैं। सबने जयजयकार किया । माकंद नामक सुन्दर हाथीका शृङ्गार पहिलेसे कर रखा था, बाहुबलि उसपर चढ़ गये। उनके ऊपर श्वेतछत्र शोभित हो रहा है। अनेक प्रकारके गाजे-बाजेके साथ बाहुबलि आगे बढ़े। पौदनपुरवासी उस समय अपने-अपने घरकी छतपर चढ़कर उस शोभाको देख रहे हैं । बाहुबलिका प्राकृतिक सौंदर्य, शृङ्गार आदि सबके चित्तको अपहरण कर रहे थे। सब लोग आँख भरकर कामदेवको उस समय देख रहे थे । देखने दो, आज ही उनका अंतिम देखना है, आगे वे देख नही सकते हैं। इस प्रकार बहुत वैभवके साथ बाहुबलि पौदनपुरके राजमार्गोसे होकर जा रहे हैं।
जिस समय बाहुबलि पौदनपुरके राजमार्गसे होकर जा रहे थे उस समय अनेक प्रकारसे अपशकुन हो रहे थे। दाहिने ओरसे छिपकली .