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भरतश वैभव कि बेटा ! सब देश फिर कर आय हो, इसलिए पितोद्रेक हुआ मालूम होता है । भायद इसीलिए उसके पास गये मालम होता है। एक नाम यम बिगड़ गया नो भी उसे दुरुस्त करने की मामर्थ्य मुझमें हैं. तुम लोगोंको इसकी चिन्ता क्यों? वह इशबाण भी है, समझकर गये होगे। मीठा ही निकला न ! जाओ ! जाओ!" अर्ककीर्ति मौनसे खड़ा है। भरतेश्वरने पुनः महाबलकुमारकी ओर देखकर कहा कि घटा! अव अनेक दुःखोंको तुम्हें देखकर भुलंगा। तुम बहुत आनन्दसे यहाँ रहो । मेरे हृदय में बिलकुल कलुषता नहीं है । तब मंत्री मित्रोंने कहा कि स्वामिन् ! विधिवा यह कुमार आपके पास आनन्दसे आया है। बाहुबलि भी अब आयेगा, उसके लिए यह सूचना है। ___ अपने पिताके व्यवहारसे असन्तुष्ट होकर यह बालक आज आया है । अब जवान होगा तो यह कितना बुद्धिमान होगा? इस प्रकार बहाँ बातचीत चल रही थी। भरतेश्वरने पुनः महाबलकुमारसे कहा कि बेटा ! जो प्रसंग आया है उसे मैं जीत लंगा। तबतक तुम अपने बड़े भाईके साथ रहो। इतनेमें अर्ककीति आकर उसे ले गया ।
इस प्रकार भरतेश्वर अपने दरबारमें अपने मंत्री-मित्रोंके साथ में थे । बाहुबलि अभीतक युद्धकी प्रतीक्षामें हाथीपर ही अभिमानसे बैठा हुआ है। आगे युद्ध होगा।
पाठकोंको बाहुबलिके परिणामके वैचित्र्यको देखकर आश्चर्य होता होगा । कितना कठोर हृदय है वह ! माताके उपदेशका प्रभार नहीं हुआ, माताकी हार्दिक इच्छाकी परवाह नहीं । अपनी ८ हजार रानियों की प्रार्थना पर पानी फेर दिया। मंत्री मित्रोंकी प्रार्थनाको ठुकराया । अर्ककीर्ति कुमार आदि आये तो उनके प्रति भी भयंकर तिरस्कार भाव ! मचमुचमें उसका कर्म प्रबल है। इतना होनेपर भी भरनेश्वर बहुत गम्भीर हैं । उनके हृदय में दुषाग्नि भड़क नहीं उठी है, यह उससे भी अधिक आश्चर्यकी बात है। सचमुत्रमें ऐसे समयमें परिणामको सम्हाल रखने की विशिष्ट शक्तिकी आवश्यकता है। कषाय उत्पन्न होने के लिए प्रबल कारणके उपस्थित होनेपर भी अपने परिणाम में क्षोभ उत्पन्न नहीं होने देना यही महापुरुषोंका खास लक्षण है। भर. तेश्वर सदा परमात्मध्यानसे इस प्रकार विचार करते हैं
हे परमात्मन् ! कठोरसे कठोर कार्यको भी मृदुभावसे करने के सामर्थ्य तुममें हैं । तुम इस कार्यमें अधिक चतुर हो! अनन्त शक्तिके धारक