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भरतेश वैभव
कि पिताजीको बताओ। बाहुबलि अनेक बार अपनी गोदपर रखकर उसे खिलाता था । परंतु पिताके नहीं दिखनेसे दादी से पिताको दिखानेके लिए हल कर रहा है । उस समय सुनंदादेवीने नौकरोंको बुलाकर कहा कि इसे ले जाओ, बड़ी बहिन यशस्वतीके पास ले जाकर भरतेश्वरको पिताके स्थान में दिखानेके लिए कहो । तब बालकको कहा कि बेटा ! जाओ, सेना स्थान में तुझे पिताजीको दिखा देंगे। बालक उनके साथ चला गया । सेनास्थानमें लेजाकर महलमें स्थित भरतेश्वरके पास बालकको ले गये । बालकको देखनेपर भरतेश्वरका गला भर आया । वहाँपर जाते ही पुनः उस बालकने पूछा कि मेरे पिता कहाँ हैं ? लोगोंने भरतेश्वर को बताया, तो बालक मुंह हिलाकर कहने लगा कि मेरे पिता नहीं हैं तथापि बालकको संतोष नहीं हुआ । बालक कहने लगा कि यह मेरे पिता नहीं हैं । मेरे पिता ऐसे हैं, इस प्रकार अपने हरे वर्णके कपड़े को दिखाकर कहने लगा । भरतेश्वरसे रहा नहीं गया। सुबलि ! मैं तुम्हरे हरे हुए भरतेश्वरने उसे अपनी गोदपर लिया 1 बच्चेका रोना एकदम बंद होगया । सब लोग आश्चर्यचकित होकर कहने लगे कि न मालूम क्या भरतेश्वरके हाथमें वश्यमोहन विद्या तो नहीं है ?
भरतेश्वर वालकसे कहने लगे कि सुबलि ! तुम्हारे पिता हम सबके आनंदको भंगकर चला गया। बेटा तू रोओ मत। इस प्रकारसे छोटे बच्चों को फेंककर तपश्चर्याको जानके लिए न मालम उसका चित्त कैसा हुआ ? बेटा ! पापीके पेटमें तुम लोग आये । इस प्रकार भरतेश्वरने क्रोध से आवेश में कहा । भरतेश्वरको रानियोंको जब यह मालुम हुआ कि पोदनपुर से छोटा बच्चा आया है, उसी समय बाहर समाचार भेजा कि उसे अंदर भेजा जाय । भरतेश्वरने कहा कि सुबलि ! जाओ, अंदर तुम्हारी दादी है, उसके पास जाओ ।
इतने में बाहुबलिको स्त्रियाँ विमानपर चढ़कर दीक्षा के लिए आकाश मार्ग से जा रही थीं । उसे देखकर चक्रवर्तीकी सेनाको बड़ा दुःख हुआ । भरलेश्वर की रानियाँ राजांगण में एकत्रित होकर उनके गमनको बड़े दुःख के साथ देख रही हैं। भरतेश्वर आँसूओंसे भरी आँखोंसे देख रहे हैं और उन्होंने नाकपर उंगली रखी। इतने में एक विश्वस्त दूतने लाकर एक पत्र दिया। पत्रको देखते ही भरतेश्वर महलके अंदर चले गये । पत्रके समाचारको जाननेके लिए सभी रानियाँ वहाँ आ गईं। उनमेंसे