Book Title: Bharatesh Vaibhav
Author(s): Ratnakar Varni
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 722
________________ २६८ भरतेश वैभव सुवर्णनिर्मित महल, रत्ननिर्मित गोपुर, नाटकशाला आदि तो अब उसे श्मशानभूमि और कारावासके समान मालूम हो रहे हैं। सौन्दयंयुक्त अनेक स्त्रियाँ अब तो उसे कुरूपी स्त्रीवेषको धारण करनेवाले पात्रों के समान मालूम होने लगे। राजपट्ट तो अब उसे एक बंदीखानेके पहरेके समान मालूम हो रहा है। भरतेश्वरके समय सब कुछ महाभाग्यसे युक्त था, परन्तु उसके मुक्ति जानेपर विक्रियासे निर्मित सभी वैभव अदृश्य इए। हाथी, घोड़ा, रथ आदि सभी उस समय उसे इन्द्रजालके समान मालूम हुए । वैराग्यका तीन उदय हआ । अर्ककीर्तिके पूत्रोंमें बहतसे वयस्क थे; उनको राज्य प्रदान करनेका विचार किया तो उन्होंने साफ निषेध करते हुए प्रतिमा की कि हम तो इस राज्यमें नहीं रहेंगे आदिराजके प्रोटपुत्रोंको पट्ट बांधनेका विचार किया तो उन्होंने भी मंजूर नहीं किया एवं सभी दीक्षाके लिए सन्नद्ध हुए । जब पौढ़ पुत्रोंने राज्यपदको स्वीकार नहीं किया तो छह वर्ष के दो बालकोंको अधिराज और युवराज पदमें अधिष्ठित किया। मनुराज नामक अपने कुमारको आधराजका पट्ट और भोगराज नामक आदिराजके पुत्रको युवराज पट्ट बांधकर उनके पालन-पोषणके लिए अन्य आप्तजनोंको नियुक्त किया। इन दोनों कुमारोंके मामा शुभराज, मतिराज नामक सरदारोंको अतिविनयसे समझाकर उनके हाथ में दोनों पुत्रोंको सौंप दिया। बाकी सभी बांधव मित्र दीक्षाके लिए सन्नद हुए । परन्तु सन्मतिनामक मंत्रोको आग्रहसे ठहराया कि तुम ये पूत्र बड़े हों तबतक वहाँ ठहरना, बादमें दीक्षा लेना । साथमें उसका यथेष्ट सत्कार भी किया गया । देश महल, हाथो, घोड़ा, प्रजा, परिवार, खजाना, निधि यादि जो कुछ भी है उसे आप लोग देखते रहना, और सुखसे जीना इस प्रकार निराशासे उसने उनको कह दिया। ___ आदिराजसे तपोवनको चलनेके लिए कहनेसे पहिले हो वह उठ खड़ा हुआ। और दोनों दोक्षाके लिए निकले। सेवकोंने चमर ढोलते हुए दो सुन्दर विमानको लाकर सामने रख दिया तो एक विमानपर अर्ककोति चढ़ गया। दूसरे विमानपर आदिराजको चढ़नेके लिए कहा । आदिराज ने उसको निषेध किया कि सामान्य रूपसे हो आऊँगा। वहाँपर उसने कहा कि वह राजनीतिको छोड़ना नहीं चाहता है । चमर, विमान आदि तो

Loading...

Page Navigation
1 ... 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730