Book Title: Bharatesh Vaibhav
Author(s): Ratnakar Varni
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 723
________________ मरतेश वैभव २६९ पट्टाभिषिक्त राजाके लिए चाहिए, युवराजके लिए क्या जरूरत है ? अविवेकके आचरणको कौन कर सकते हैं । इसे में नहीं चाहता हूँ। ___ अर्ककीसिने आग्रह किया कि भाई ! अब तो अपने मोक्षपथिक हैं, इसे मोक्षयान समझकर बैठने में हर्ज नहीं, तथापि वह तैयार नहीं हमा कहने लगा कि दीक्षा लेनेतक राज्यांगके संरक्षणको आवश्यकता है। बड़े भाईके उस विमान और चमरके साथ चलनेपर आदिराजने भी एक पालकीपर चढ़कर यहाँसे प्रयाण किया। महल में उन छोटे बच्चोंको पालनेवाली दो दासियों रह गई हैं । बाकी सभी स्त्रियां उनके योग्य सुवर्ण पालकियोंपर चढ़कर इनके पीछेसे आ रही हैं। सारा देश ही निगरसमें मग्न हुआ है, इसलिए वहाँपर रोनेवाले रोकनेवाले वगैरह कोई नहीं है । अतएव विशेष देरी न करके ही राजेन्द्र अर्ककीर्ति आगे बढ़े। नगरसे बाहर पहुंचकर भरतेश्वरने जिस जंगल में दीक्षा लो थी उसी जंगलमें प्रविष्ट हुए । और वहाँपर एक चन्दनवृक्षके समीप अपने विमानसे उतरे। सब लोग जयजयकार कर रहे थे! पालकोसे उतरे हा! मादिराजको भी बलाकर अपने पास ही खड़ा कर लिया। बाकी सभी जरा दूर सरककर खड़े हुए और स्त्रियाँ भी कुछ दूर अलग खड़ी हो गई। गुरु हंसनाथको ही अपना गुरु समझकर दूसरोंकी अपेक्षा न करते हुए अपने आप ही दीक्षित होनेके लिए सन्नद्ध हुए। वे भरतेश्वरके हो तो पुत्र हैं। पिताको दीलाके समय जिस प्रकार परदा घरा या उसी प्रकार इनको भी परदा धरा गया । पिताने जिस प्रकार दीक्षा ली उसी प्रकार इन्होंने भी दीक्षा ली, इतना ही कहना पर्याप्त है । भरतेशके समान ही दीक्षा ली । परन्तु भरतेशके समान अन्तर्मुहूर्त समयमें कर्मोंका नाश उन्होंने नहीं किया । कुछ समय अधिक लगा ! निर्मल शिलातलपर दोनों भाई कमलासनमें बैठ गये । और समऋजुदेहसे विराजमान होकर आँख मींच ली एवं चंचलमनको स्थिर किया। ___ आँख मींचने मात्रसे भाईका सम्बन्ध भूल गये। अब वहाँपर कोई मातृमोह नहीं है। मनकी स्थिरता आत्मामें होते ही उन्हें शरीर भिन्न रूपसे अनुभवमें आने लगा। हर पदार्थका मोह तो पहलेसे नष्ट हुआ था। सहोदर स्नेह भी अब दूर हो गया है। इसलिए अब उन योगियोंको परमात्मकलाकी वृद्धिके साय कर्मकी निर्जरा हो रही है।

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