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भरतेश वैभव कहा कि युवराज तो दीक्षित हुआ । अब युवराजपदके लिये यहाँ कोन योग्य हैं ? तब उपस्थित समस्त राजाओंने एवं मंत्री-मित्रोंसे प्रार्थना की कि स्वामिन् ! बाहुबलि यदि दीक्षा लेकर गया तो क्या हुआ ? युवराज पदके लिए सनीतिमार गोय है ; वह नीति निष्ठात्म है, आपके समान विवेकी है, वहीं इस पदके लिये योग्य है। ___ भरतेश्वरको भी संतोष हुआ । उन्होंने योग्य मुहूर्तसे युवराजपट्ट का विधान किया । नगरका शृंगार किया गया। जिनपूजा बहुत वैभव के साथ की गई और अर्ककीतिकुमारका युवराजपट्टोत्सव हुआ। मेरे बाद में यही इस राज्यका अधिकारी है, इसे सूचित करते हुए भरसेश्वर ने अपने कंठहारको निकालकर उसके कंठमें डाल दिया। सिंहासनपर बैठाकर स्वयं भरतेश्वरने कुमारको बीरतिलक किया। भरतेश्वर भाग्यशाली हैं। अधिराज पिता है, पुत्र युबराज है, इससे अधिक भाग्य और क्या हो सकता है ? अमृतपान किये हुए अमरोंके समान सभी मानन्दित हो रहे हैं। अर्ककीतिके सहोदरोंने अधिराज व युवराजके चरणों में भेंट रखकर साष्टांग नमस्कार किया । अर्ककीतिने कहा कि पिताके समान मुझे साष्टांग नमस्कार करनेकी जरूरत नहीं। तब भरतेश्वरने कहा कि बेटा ! रहने दो ठीक है। क्या तुम भी मेरे सहोदरोंका ही व्यवहार चाहते हो । इसके बाद हिमवान पर्वततकके समस्त राजाओंने भेंट रखकर नमस्कार किया। इस प्रकार बहुत वैभवके साथ युवराजपदोत्सव हुआ। अर्ककी तिने पिताके चरणों में मस्तक रख, राजागण मंत्री-मित्रोंका उचित सन्मान कर राजमहल रवाना हुआ।
फिर चार-आठ दिन बीतनेके बाद मंत्रीने आकर प्रार्थना की कि राजन् ! सेनाके साथ आये हए राजागण अपने-अपने स्थानपर जाना चाहते हैं। इसलिए अनुमति मिलनी चाहिये । भरतेश्वरने तथास्तू कहकर सर्व व्यवस्थाके लिए आज्ञा दी । कामवृष्टिको कहकर भरतेश्वरने पहले सबको बहत आनन्दसे स्नान कराया। तदनंतर महलमें सबको दिव्यभोजन कराया । स्वर्गीय मुधारससे भी बढ़कर वह उत्तम भोजन था, इससे अधिक क्या बर्णन करें? व्यतरोंका भी यथायोग्य सन्मान किया गया। भोजनसे तृप्त होने के बाद सबको हाथी-घोड़ा, वस्त्राभूषण, रथरत्नादिकको प्रदान करते हुए उनका सन्मान किया एवं कृतज्ञताको व्यक्त करते हुए भरतेश्वरने कहा कि राजा लोग सब सुनें।
आप सबके सब मेरे हितैषी हैं अतएव इतने कष्टोंको सहन कर अनेक स्थानोंमें फिरते हुए मेरे राजमंदिरतक आये। आप लोग सब राजा