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भरतेश वैभव हैं। माता-पिताको न पूछकर लोकम अपनी कन्याओंको कौन देते है ?। आप लोगोंने मात्र वैमा व्यवहार किया । ___ अतएव आप लोगोंकी वृत्ति कष्टतर है. उइंड है, अतएव आप गरीब नहीं हैं । इस प्रकारका अभिमान षट्खंडमें कोई नहीं कर सकते हैं । परन्तु मेरी परवाह न कर आप लोगों ने यह कार्य किया। शाबाश ! इस प्रकार भरतजीने हेसते हुए कहा।
- "राजन् ! जाने दो आपको न पूछकर आपके पुत्रोंका विवाह अपनी कन्याओंके साथ इन्होंने किया सो इन्होंने उचित हो किया। क्योंकि ये मामा हैं। अर्ककीति आदिकी माताओंके सहोदरोंने अपने भानजोंको ले जाकर विवाह किया इसे आपने सहन किया। उन लोगोंने यदि विवाह ही किया तो क्या आपके पुत्र यह नहीं कह सकते थे कि हम पिताजीसे पूछे बिना कुछ भी नहीं कर सकते हैं" नागरने कहा।
तब भरतजीने कहा आपलोग अब पक्षपात करते हैं। क्योंकि आपलोग एक ही कुलके हैं। इसलिए दक्षिणांक, कुटिल, विदूषक तुम लोग बोलो तो सही किसकी गलतो है ? मुझे न पूछकर इन लोगोंने विवाह किया यह इनकी गलती है या मेरो गलती है ?
विदूषकने झट कहा कि सोना जब काला होगा तो आपकी भी गलती हो सकती है | अब आप लोग सुनिये । उनकी तो गलती है, परन्तु मैं उसे सुधार लेता हूं। आपसे न पूछकर जो उन्होंने अपनी कन्याओंका विवाह आपके पुत्रोंके साथ किया है, इस गलतीके लिए उन राजाओंको आगे जो कन्यारत्न उत्पन्न होंगे वे सब आपके पुओंके लिए ही दिये जायेंगे । इसे आप और वे मंजूर करें । और एक बात है। उन भानुराज व विमलराजकी जो कुमारी बहिनें आज मौजूद हैं उन सबका विवाह आपके साथ होना चाहिये । मेरे इस निवेदनको भी स्वीकार करें। आपलोगोंके कार्यको सुधारकर मैं खाली हाथ कैसे जा सकता हूँ ? उससे बाह्मण संतुष्ट नहीं होंगे। इसलिए इनके नगरमें जितने. ब्राह्मण हैं उनको अन्न उत्पन्न होनेवाली सुन्दर कन्यायें मुझे मिलनी चाहिये । इस प्रकार विदूधकने कहा तब अनुकूल नायफने विदूषकको शाबाशी देते हुए कहा कि बिलकुल ठीक है । भरतजीको भी हंसी आई, उपस्थित सदं अनताने विदूषकके विनोदपर आनंद व्यक्त किया। __ भरतजीने भी विदूषकसे कहा कि तुमने ठीक सुधार लिया । तदनंतर पुत्रोंकी ओर देखकर कहा कि आप लोग अनेक राज्योंमें भ्रमण करते