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भरतेश वैभव
१४३ रविकीतिराजने बीच में ही कहा कि प्रभो ! यहां एक शंका है। आपश्रीने फरमाया कि आठ फर्म तो तैजस फार्माण शरीरके अन्दर रहते हैं तो फिर बाहरका शरीर (औदारिक) तो उन कर्मोंसे बाहर है, ऐसा अर्थ हआ । अर्थात औदारिक शरीरके लिए नौका कोई सम्बन्ध नहीं है भगवंतने उत्तरमें फरमाया कि ऐसा नहीं है। सात कम तो अन्दरके तेजस कार्माण शरीरसे सम्बन्ध रखते हैं। परन्तु नामकर्म तो बाहर व अन्दरके दोनों शरीरोंसे सम्बन्ध रखता है अर्थात् सातकर्म तो तेजस कार्माणमें रहते हैं । परन्तु नामकर्म तो औदारिक उन अन्तरंग शरीरोंमें भी रहता है, अब समझ गये?
रविकीति राजने कहा कि 'समझ गया, लोकनाय !'
आगे पुद्गल द्रध्यका वर्णन होने लगा। पूरण व गलनसे युक्त मानस्तुका नाम पहाल है। पुरकर व गलकर वह पदार्थ तीन लोकमें सर्वत्र भरा हुआ है।
पांचवर्ण, आठ स्पर्श, दो गन्ध और पांच रस इन बीस गुणोंसे वह पुद्गल युक्त है । पाँच इंद्रियोंके विषयभूत पदार्थ, पाँच इन्द्रिय, आठ कर्म, पांच शरीर, मन आदि मूर्त पदार्थ सभी पुद्गल हैं।
वह पुद्गल स्थूल सूक्ष्मके भेदसे पुनः छह भेदसे विभक्त होता है। उन स्थूल, सूक्ष्मोंके भेदको भी सुनो। स्थूलस्थल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मसूक्ष्म, इस प्रकार छह भेद हैं। पत्थर, जमीन, आदि पदार्थ स्थूलस्थूल है । जल तेल आदि स्थूल है। छाया, धूप, इंद्रियोंको गोचर होनेवाले शीतल पवन, ध्वनि, सुगन्ध आदिक सूक्ष्मस्थूल हैं । कर्मरूपी पुद्गल सूक्ष्म है। इससे भी अधिक सूक्ष्मसूक्ष्म गुणसे युक्त और एक पुद्गलका भेद है । इस प्रकार पुद्गलके छह अंग हैं!
सरलतास निकालना, जरा सावकाशसे निकालना, निकालनेपर भी नहीं आना मृदु चार इन्द्रियोंसे गम्य, कर्मगम्य ये पाँच भेद हैं । परन्तु छठे सूक्ष्मसुक्ष्म नामके भेदमें ये नहीं पाये जा सकते हैं।
इस पुद्गलका तीन भेद है। अणु, परमाणु व स्कंधके भेदसे तीन प्रकार है । परमाणु पांचों ही इन्द्रियोंसे गोचर नहीं हो सकता है। उससे सूक्ष्म पदार्थ लोकमें नहीं है । उसे ही सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं।
अनन्त परमाणुओंके मिलनेपर एक अणु बनता है। दो तीन चार आदि अणुओंके मिलनेपर पिंडरूप स्कंध बनता है। इस प्रकारके पर्याय पुद्गलके हैं।