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भरतेश वैभव
too ज्ञानपूजा जबतक हम नहीं कर सकते हैं, तबतक आपकी इन फलोंसे पूजा करेंगे :
पुनः पुनः साष्टांग नमस्कार करते हुए हाथ जोड़कर स्तुति करते हैं। भक्ति से हर्षित होते हुए भगवंतकी प्रदक्षिणा दे रहे हैं ।
हेम गिरीको प्रदक्षिणा देते हुए आनेवाली सोमसूर्यकी सेनाके समान वे हेमवर्ण के कुमार भगवंतको प्रदक्षिणा दे रहे हैं, उनकी भक्तिका वर्णन क्या करना है ? भगवंतको शरीरकांति वहां पर सर्वत्र व्याप्त हो गई है । उस बीचमें ये कुमार जा रहे थे। मालूम हो रहा था कि ये कांतिके तीर्थ में हो जा रहे हैं।
अत्यन्त ठण्डे वूपके मार्ग में चलने के समान तथा ठण्डे प्रकाशको धारण करनेवाले दीपक प्रकाश में चलने के समान के कुमार वहाँ पर प्रदक्षिणा दे रहे हैं ।
रत्नसुवर्णके द्वारा निर्मित गंधकुटिमें रत्नगर्भ वे कुमार जिनरत्नों के बीच रत्नदीपके समान जा रहे हैं, उस शोभाका क्या वर्णन करें ?
जिनेन्द्र भगवंत के सिहासन के चारों ओर विराजमान हजारों के वलियोंकी वंदना करते हुए वे विनय रत्नकुमार रविकीर्तिराजको आगे रखकर जा रहे हैं, उनको भक्तिका क्या वर्णन करें ?
उनके वलियों में अनेक केवली रविकीतिराजके पूर्व परिचय के थे । इसलिये अपने भाइयोंको भी परिचय देनेके उद्देश्यसे रविकीर्तिकुमारने उनको इस क्रमसे नमोस्तु किया ।
उन महायोगियोंके बीच सबसे पहिले एक योगिराजको रविकीति राजने देखा, जो कि अपनी कांतिसे सूर्यचन्द्रको भी तिरस्कृत कर रहे हैं । उनको देखकर कुमार ने कहा कि 'मैं स्वामी अकंपवलीको नमस्कार करता हूँ, सभी भाई उसी समय समझ गये कि यह वाराणसी राज्यके अधिपति राजा अकंप है। उन्होंने राज्यवैभवको त्यागकर तपश्चर्या की व केवलज्ञानको प्राप्त किया। साथमें सबने अकंपकेवलीको वंदना की । युबराज अकीर्तिको अपनी कन्या दी व राज्यको अपने पुत्रको दिया एवं स्वयं तपोराज्यके आश्रय में आकर केवली हुए । धन्य है ! इससे बढ़कर हमें दृष्टान्तकी क्या आवश्यकता है ? इस प्रकार विचार करते हुए वे कुमार आगे बढ़ रहे थे कि इतने में बहाँपर उस जिन समूह में दो योगिराज देखने में माये । मालूम होता था कि स्वयं चन्द्र और सूर्य हो जिनरूपको लेकर वहाँपर उपस्थित है।
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