Book Title: Bharatesh Vaibhav
Author(s): Ratnakar Varni
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 656
________________ २०२ भरतेश बमव . रहें इस प्रकार सबको पत्र भेजकर स्वयं महल में प्रवेश कर गये। वहांपर रानियोंसे कहा कि मैं वहाँपर पूजा करूंगा, आपलोग यहाँसे सामग्री व आरती इत्यादिको बनाकर भेजती रहें। इसीसे आप लोगोंको विशिष्ट पुण्यकी प्राप्ति होगी। इस प्रकार स्त्रियोंको नियत किया आनन्द व प्रस्थानको भेरी बजाई गई । कैलासपर्वतके कुछ दूरपर अपनी सारी सेना का मुकाम कराया। स्वयं अपने पुत्र, मित्र, राजा व ब्राह्मण आदि आप्तबंधुओंको लेकर विमान मार्गसे कैलासको ओर चले गये । कैलास पर्वतके तटमें कुछ ठहरकर सम्राट्ने कुछ विचार किया। निश्चय किया कि दिनमें वैभवसे पूजा करेंगे एवं रात्रिके समय रथोत्सव करायगे। इस विचारसे विश्वकर्मको आज्ञा दी कि रयोंकी तैयारी करो। इसी प्रकार उचित सामग्री आदि मगाना, रथोंका श्रृंगार करना, सबको समाचार देना, आदिकार्य वहाँ उपस्थित राजाओंको सौंप दिया। विद्याधरोंको विमान भेजनेका कार्य सेनापति को सौंप दिया। गंगाके तटमें अपने लिए एकभुक्ति रहेगी यह सूचना रसोइयाको दी गई । एवं आई हुई सर्व जनता को भोजनादिरो तृप्त करने का कार्य गृहपतिको सौंपा गया । मुनियोंका आहारदानका प्रबन्ध एवं आगत राजाओंका विनय समादर सत्कार "हे युवराज ! तुम्हारे लिए सौंपता हैं मुझे पूजाकी चिंता है। तुम इन कार्यों में सावधान रहना" | इस प्रकार अकीतिको नियत किया वीरानणो दामाद व राजपूत्रोंके साथ पंक्ति भोजन व उनका आदर-सत्कार करने का कार्य महाबलकुमारको दे दिया गया । ब्राह्मण भोजन व श्रीबाल नैवेद्यकी चिंता बुद्धिसागरको सौंपी गई । आई हुई सर्वजनताओंके योगक्षेमका विचार माकाल व्यन्तरको दिया गया । अयोध्यानगरीमें विमानसे पहुँचकर रोज आरती लानेका कार्य शूर वीर विश्वस्तजनोंको दिया गया इतर महाजनों को यह आदेश दिया कि मैं भगवंतको पूजामें लग जाऊँगा । आप लोग व्यंतर, विद्याधर राजाओंके साथ मुझे पूजन सामग्री देते जावें। चितित पदार्थको देनेवाले चितामणि रत्नको संताषसे आदिराजकुमारके हाथमें सौंप दिया। विविध इच्छित पदार्थको प्रदान करनेवाले नवनिधियोंको वृषभराज व हंसराजके वशमें दे दिया । शेष पुत्र व दामादोंको चामर लेकर खड़े होनेका आदेश दिया । इसप्रकार पूजासमारंभको बाह्य सर्वव्यवस्था कर सम्राट् ऊपर पर्वतपर चले गए। समवशरण आकाश प्रदेशमें था। किसी मदिरसे देवके चले जानेपर मंदिरकी जो हालत होती है वही दशा उस समय उसकी थी । जगवीण मादिप्रभु पर्यतपर विपनाम थे, जैसे कोई मित्महकमीत

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