Book Title: Bharatesh Vaibhav
Author(s): Ratnakar Varni
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 671
________________ भरतेश वैभव २१७ विजयाको उसो आशयका पर मना, और सबको संतुष्ट किया। इस प्रकार कुछ समय बहुत आनन्दसे व्यतीत हुए । एक दिन बैठे-बैठे भरतेश्वरने विचार किया कि अब आगे आनेवाला काल बहुत कठिनतर है । कैलाश पर्वत के रत्न, सुवर्णादिकसे मन्दिरोंका निर्माण किया गया। वहाँपर आगेके काल में मनुष्योंका जाना उचित नहीं है । उन मन्दिरोंपर कोई आघात न हो इसका प्रबन्ध होना चाहिए। बोच पर्वतसे इधरके भागके पर्वतको दण्ड रत्नसे कोरकर मनुष्य उसे पारकर न जावे ऐसा करे। इस विचारसे उसो समय मागधामरको बुलाया व भद्रमुख को भी बुलाकर युवराज अर्ककोतिके नेतृत्व में इस कार्यको उन्हें सौंप दिया। दण्डरत्नके द्वारा विश्वकर्मने पर्वतको उपर्युक्त प्रकारसे कोर दिया। अब पर्वत एक गिडो (कलश) के समान बन गया । इतने में युवराज ने भद्रमुखको यह कहा कि पर्वतके आठ भागों में आठ पादोंके समान रचना करो ! भद्रमुखने तत्काल आठ पादोंके रचना आठ दिशाओंमें की। वे आठ खम्भोंके समान मालूम होते थे। युवराजको बुद्धिचतुरतापर सबको प्रसन्नता हुई। अब मनुष्य तो वन्दनाके लिए यहाँ नहीं ला सकते हैं । परन्तु अब रजतादि अष्टपादका पर्वत बन गया । इसलिए इसका नाम अष्टापद पड़ गया है । उसी समय उस कोरे हुए भागके बाहरकी ओर चाँदोका एक परकोटा निर्माण किया गया सब कार्यको समाप्त कर चक्रवर्तीको निवेदन किया। वे भी प्रसन्न हुए । मागधामर, भद्रमुख व युवराजको वस्त्ररत्नामरणादि प्रदान कर सम्मान किया एवं कहा कि आप लोगोंने बड़ो शरताका कार्य किया है। हमारे समयमें मनुष्य विमानों में बैठकर आएं एवं पूजन करें। फिर आगे विद्याधर व देव जाकर पूजा करें । जिनालयोंकी रक्षा युवराज के द्वारा हुई। परन्तु आगे पस्कोटेको चाँदीके लिए लोग आपसमें कलह करेंगे, इस विचारसे सगरपुत्र वहाँ खाईका निर्माण करेंगे। व्यंतरामणि मागधामरको विदाकर आत्मांतराग्नणि भरतेश्वर अत्यन्त आनन्दके साथ राज्यवंभवको भोगते हुए सौख्यविश्रांतिसे समयको व्यतीत कर रहे हैं। उसका क्या वर्णन करें। भूभारको चिंता मंत्रीरत्न वहन कर रहा है । परिवार अर्थात् सेनाकी देखरेख अयोध्याककी जिम्मेवारीपर है, नगरकी रक्षा माकाल कर रहा है। भरतेश्वर आत्मयोगमें हैं | राजपुत्रोंका आतिथ्य वगैरह युवराज कर रहा है । और व्येतरोंका योगक्षेम मागधामर चला रहा है, भरतेश आत्मयोगमें हैं । हाथी, घोड़ा, आदिकी देखरेख, घर व महलकी देखरेख

Loading...

Page Navigation
1 ... 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730