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भरतेश वैभव साझ कर छोड़ दिया। जिन आभरणोंकी शोभा शरीरके लिए थी, उनको पतिके जानेपर वे क्यों धारण करेंगी। इसलिए बहुत धैर्य के साथ उनसे भोहका त्याग किया। उनके हृदय में अतुल विरक्ति है। चित्तमें अनुपम धैर्य है, क्योंकि वे क्षत्रिय स्त्रियाँ हैं । सासुओंको देखकर बहू देवियों एवं बहनोंके धैर्यको देखकर सासूरानरे मनमें ही प्रसन्न हो रही हैं । आभरणोंको दूर कर जब केशपाशका भी मुण्डन किया तो पासमें रहनेवालोंको कोई दुःख नहीं हुआ। क्योंकि वह जिनसमा है। वहाँपर शोकका उद्रेक नहीं हो सकता है । माणिक्य रल तो अब अलग हो गया है। अब उनके पाणितलमें कमण्डलु व जपसर आ गये हैं। अब उनको रानियोंके नामसे कोई उल्लेख नहीं कर सकता है। अब तो उनको अक्का या अम्मा कहते हैं। अखिका या कांतिके नामसे अभिधान करने के लिए केशलोंच स्वतः करनेकी आवश्यकता है। वह कठिन है। अतः इस अवस्थामें रहकर उसका अभ्यास करो। इस प्रकारका आदेश दिया गया ।
परदा हट गया, बाजेका शब्द भी बन्द हुआ। अब अन्दर सफेद साड़ीको पहनो हुई साध्धियाँ विराजी हुई हैं। मालूम होता है कि कोमल पुष्पाच्छिादि लताओंने ही दीक्षा ली है।
धरणेद्रको देवियां, देवेन्द्रकी देवियाँ आदि आगे बढ़ी व उनके चरणों में मस्तक रक्खा। इसी प्रकार समस्त सभाने ही उनको वंदना को । विशेष क्या ? देवोंने हर्षभरसे नृत्य कर आकाश प्रदेशसे पुष्पवृष्टि की। उस दृश्यका वर्णन क्या हो सकता है ? नवीन मुनिगण मुनियोंके समूहमें एवं नवीन साध्वीगण अजिंकाओंके समूहमें बेठ गई। यह समाचार बातही बातमें दशों दिशाओंमें फैल गया।
चक्रवर्तीका स्त्रोरत्न अर्थात् पट्टरानी नरकगामिनी होती है, इस प्रकार कुछ लोग मज्ञानसे कहते हैं । परन्तु वह ठीक नहीं है । इसके लिए एक सिद्धान्तका नियम है।
दुर्गतिको जानेवाले चक्रवर्तीको पट्टरानो दुर्गतिको हो जाती है यह सत्य है, परन्तु स्वर्ग व मोक्षको जानेवाले चक्रवतिके स्वोरलको स्वर्गको ही प्राप्ति होती है, यह सिद्धान्तका नियम है ! पुरुषोंके परिणामके अनुसार हो स्त्रियोंका परिणाम होता है । इसलिए पुरुषको गतिके अनुसार ही वह स्त्रीरत्न उस मार्ग में कुछ दूर बढ़कर रहती है।
पुत्र मोक्षगामी, भाई मोक्षगामी, स्वतःके पति भरतेश मोक्षगामी फिर