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भरतेश वैभव
चकेशकैवज्य संधिः परमात्मन् ! महादेव ! उस भरतेशकी महिमाको क्या कहें ? हंसाराध्य वह सम्राट् योगीने जब इस प्रकार उत्तम पदको प्राप्त किया तो उसो समय दीक्षाप्राप्त पुत्र मित्रादिकोंने भी उत्तम पदको प्राप्त किया । दुपहरके समय भरतेशने धातिया कोको दूरकर साथके लोगोंको दीक्षा दी। आश्चर्य है कि उनमें से दषभराज योगीने सायकालके समय घातिया कर्मोको नष्ट किया । पिताने बहुत जल्दी घातिया कोको दूर किया ! फिर मैं आलसी बना रहै यह उचित नहीं है । इस विचारसे शायद स्पर्धाके साथ उसने घातिया कर्माको दूर किया हो। इस प्रकार वह धीरयोगी वषभराज परमात्मा बन गया है। बचपनमें जब अपने पिता भरतेशने उसका हाथ देखा तो उसने भी भरतेशका हाथ देखा था। तब पिताने कहा था कि बेटा ! तुम और मैं एक सरोखे हैं। वह बात आज चारितार्थ हो गई है। चन्द्रिकादेवी आदि अजिंकायें उस समय आनन्द समद्र में मग्न हुई। एवं इन्द्राचित अन्य अजिकार्य भी आनन्दसे फली न समाती थीं। विशेष क्या, गंधकुटीमें स्थित सारे भव्य प्रशंसा करने लगे । अर्ककोनि व
आदिराज पिता व सहोदरोंके दीक्षित होनेपर चिन्तित थे। परन्तु जब वृषभराज केवलो बन गया तो उनका भी आनन्दका पार नहीं रहा । हर्षसे तत्य करने लगे। पिताजीने इसका नामकरण वृषभराज किया है। अर्थात् दादाके नामसे इसे बुलाया है, वह आज सार्थक हो गया है वाह ! वषभराज ! संसारका तुमने नाश किया है। शाबास ! तुम साहसो हो। इस प्रकार कहकर वृषभराजयोगीके चरणों में मस्तक रक्खा । उसो समय नागरमनि, अनुकूल योगी बुद्धिसागर यति और दक्षिणांक स्वामीको भी अवधिशाम और मनःपर्ययज्ञानकी प्राप्ति हुई। चक्रवर्तीके बंधुओंको किस बातको कमी है ? उस समय और भी कुछ पुत्रोंको, राजाओं को अवधिज्ञान आदि उत्तम सिद्धियाँ प्राप्त हुई। आत्माराममें विहार करनेवालों को क्या बड़ी बात है ? उसी समय देवोंके द्वारा गंधकुटीकी रचना की गई, एवं नरसुर उरगलोकके वासियोंने भक्तिसे पूजा की। विशेष क्या, भरत जिनेन्द्रके समीप ही वृषभजिनेशका महल तैयार हो गया है। __ वह रात्रि बीत गई। सूर्योदयके होनेपर वह आराध्य भरतसर्वज्ञ अघातियाँ कर्मोको दूर करने के लिए सन्नद्ध हुए, उसका क्या वर्णन करें ? गंधकुटीका परित्याग किया। पहिलेके श्रीगंधवृक्षके मूल में ही फिर पहुंचे। वहाँपर सुन्दर शिलातलपर पल्यंक योगासनसे विराजमान हुए।