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भरतेश वैभव
सामने गुड़की कोमत हो क्या है ? बुद्धिमत्ता, वोरता आदिमें आपको बराबरी करनेवाले लोक्रमें कौन है ? आपकी वृद्धिको देखकर बुद्ध लोग ज्ञानी लोग वीरपुरुष सभी प्रसन्न होते हैं राजेन्द्र ! आपका शक्य हैं, मुझ सरीखा मूर्ख उसे क्या जान सकता है। मैंने अज्ञानसे एक बात कही ! आप क्षमा करें। आपने जो विचार किया है अपराधको आप भूल जायें। इस प्रकार प्रार्थना कर स्थानपर बैठ गया ।
वही युक्त है । मेरे बुद्धिसागर अपने
सम्राट्ने अपने पुत्रों को बुलाया। बड़े भैया ! "इधर आओ इस राज्य - को तुम ले लो, मुझे दीक्षाके लिए भेजो" इस प्रकार कहते हुए अर्ककीर्ति कुमारको आलिंगन देते हुए भरतेशने कहा ! उसी समय आँसू बहाते हुए अर्ककीर्ति मूडित हो गया । शीतलोपचारसे पुनः जागृतकर सम्राट्ने कहा कि बेटा ! घबराते क्यों हो, क्या क्षत्रिय लोग डरते हैं ? दुःख किस बासके लिए करते हो ? मुझे के साथ भेजो ।
अकीर्ति कुमारने हाथ जोड़कर कहा कि पिताजो, क्या हायोका भार कलम ( हाथीका बच्चा ) धारण कर सकता है ? आपकी सामर्थ्यसे प्राप्त इस राज्यभारको मैं कैसे उठा सकता है। इसलिए ऐसा विचार क्यों कर रहे हैं ?
उत्तरमें सम्राट्ने कहा कि बेटा ! तुम इस राज्यभारको धारण करनेके लिए सर्वया समर्थ हो इस बातको जानकर ही मैंने सब कुछ कहा है । बेटा ! क्या तुम भूल गये ! जब में उस दिन वृषभराजको अपनी गोदपर लेकर बैठा था, उस समय उसे भार समझकर तुमने अपनी गोदपर लिया, फिर बाज इस राज्य मारके लिए क्यों तैयार नहीं होते ?
अकीति कहने लगा कि पिताजी ! बड़ी-बड़ी बातें करके मुझे आप फुसला रहे हैं एवं अचलित शिवपदके प्रति आपका ध्यान है और मुझे इस मलिन राज्य पदमें डाल रहे हैं, क्या यह न्याय है ? आज पर्यन्त आपको जो इष्ट थे उन्हीं अन्न, वस्त्र, आभूषणोंसे आपने मेरा पालन किया, परन्तु आज आपको जिस राज्यसे तिरस्कार है ऐसे राज्यको मुझे क्यों प्रदान कर रहे हैं ? आज पर्यन्त हमारे इष्ट पदार्थोंको बार-बार देकर हम लोगोंका पालन-पोषण किया। परन्तु आज तो आप हमें व आपको जो इष्ट नहीं है, ऐसे राज्यको प्रदान कर रहे हैं तो हमने आपको क्या कष्ट दिया था ?
बेटा ! तुम खोलने में चतुर हो। इस बातको मैं जानता हूँ । यह