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भरतेश वैभव भाषण करते हुए सम्राट्को गुलाबजलसे ठण्डा किया । उत्तरमें भरतेश्वरने भी सबको सन्तुष्ट किया।
आप सब मित्रोंने कैलासनाथके पूजामहोत्सव में योग देकर बहुत अच्छा किया । बहत आनन्द हुआ। भगवतका समवशरण जब अदृश्य हो गया तो मेरी सम्पत्तिको बात ही क्या है ? परन्तु आप लोग मेरे परमबन्धु हैं। आपने मेरे इस कार्य में योग दिया है । आप और हम भगवंतकी पूजासे पावन बन गये हैं। अब आप लोग अपने नगरकी ओर प्रस्थान करें। इस प्रकार सब इष्ट मित्र, नमि, विनमि, मागधामरादि व्यंसरोंको वहाँसे विदा किया। कैलास पर्वतसे सर्व व्यतर, विद्याधर आदि चले गये । देवेन्द्र धरणेंद्र के साथ यिनयसे बोलकर योगियोंको दन्दना कर भरतेश्वर भी अयोध्याको ओर निकले । यात्रानिमित्त उपस्थित सर्व प्रजायें चली गई। भरतेश्वर पुत्र मित्र व प्रधानमंत्री आदिके साथ गुरु हंसनाथकी भावना करते हुए जा रहे हैं, व्यवहार धर्मका उद्यापन कर निश्चय धर्मको ग्रहण कर, सद्योजात चित्कालको भावना करते हुए अनवद्य सौर्वभौम अपने नगरकी ओर आ रहे हैं, सुख दुःखोंमें अपनेको न भुलानेवाला, परमात्मसुखको हो सबसे बढ़कर सुख समझनेवाला और कल सुखपूर्वक मुक्ति ब्रानेबाला बह सूखी सार्वभौम अपने नगरकी ओर जा रहा है। दर्पणमें देखनेवालोंकी अनेक प्रकार की आकृति विकृतियाँ दिखती हैं। तथापि दर्पण अपने स्वभावमें ही है इसी प्रकार अपने कर्मोंके रहनेपर भी प्रसन्न रहनेवाला यह सुप्रसन्न सम्राट जा रहा है । जगत्को दृष्टिमें राज्यको पालन करनेपर भी सुज्ञानराज्यके पालन करनेवाला वह विचित्र राजा जा रहा है इस प्रकार महा. वैभवके साथ आकाश मार्गसे आकर चक्रवर्तीने साकेतपुरमें प्रवेश किया एवं सबको हितमित वचनसे विदा किया एवं स्वयं अपने महलकी ओर चले गये।
महलमें व्याकुलताके साथ नमस्कार करती हुई रानियोंको अनेक विषसे सम्राट्ने सांत्वना दी। इधर केलाशमें देवेन्द्रको एक लीला करने की सूझी । भगवंतने कर्मको कैसे जलाया इस विषयको मैं दुनियाको बतलाऊँ, इस विचारसे तीन होमकुण्डकी रचना की। और श्रीगंधकी लकड़ी भी एकत्रित हो गई । अनलकुमारदेवके मुकुटसे उत्पन्न आगसे देवेन्द्रने अग्निसरक्षण कर बहुत वैभवसे होम किया। तीन कुण्ड तो तीन देहकी सूचना है । वह प्रज्वलित अग्नि ध्यानकी सूचना है । भगवंतने तोन शरीर में स्थित कर्मोको ध्यानके बलसे जिस प्रकार नाश किया, उसी प्रकारको