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भरतेश वेभव ये। उस समय वहाँपर तंडुल पर्वतका निर्माण हुआ । सुरसिद्ध यक्ष जयजयकार कर रहे हैं । भरतेश्वर सुगन्धयुक्त पुष्पोंको लेकर जब अर्पण कर रहे थे तब वहाँपर पुष्पपर्वत बन गया। अत्यन्त सुगन्ध व सौन्दर्य से युक्त नैवेद्य, भक्ष्यको जिस समय भरतेश्वरने अर्पण किया तो वह केलासपर्वत पंचवर्णका बन गया, आश्चर्य है। दीपाचेनमें रानियोंके द्वारा प्रेषित आरतियोंको समर्पण किया, इसी प्रकार यह उल्लेख करते हुए कि यह बहुओंके द्वारा प्रेषित आरतियाँ हैं, यह पुत्रियोंके द्वारा प्रेषित आरतियाँ हैं। इस प्रकार अपने अवधिज्ञानसे जानते हुए हंसते हए सन्तोषसे अगणित आरतियों को समर्पण किया । सम्राटकी पुत्रियाँ ३२ हजार हैं । ९६ हजार रानियां हैं। इसी प्रकार हजारों बहुएं हैं। सबकी ओरसे आरतियां आई थीं। बहुत' भक्तिसे जब धूपका अर्पण किया, वह धूपका घूम जिस समय जिनेंद्रकी कांतिसे युक्त होकर आकाशमें जा रहा था तो लोग यह समझ रहे थे कि स्वर्गका यह सुवर्ण सोपान है। सम्राद्के करतलमें उत्पन्न एक रत्नलता इन्द्रपुरीमें पहुंच रही हो उस प्रकार वह धूमराज मालूम हो रही थी। फलोंको जिस समय उन्होंने अर्पण किया, उस समय अनेक पर्वत हो तेयार हुए। बड़े-बड़े गुच्छ व फलोंसे युक्त उत्तम फलोंको सम्राट्ने अर्पण किया, देवगण उस समय जयजयकार कर रहे थे। वहीं जैसे-जैसे फल बढ़ते गये व्यन्तर उसे गंगामें निकाल निकालकर डाल रहे थे। पूनः अर्चन करनेके लिए उनके हाथ में नवीन फल मिल रहे थे । बहुत आनन्दके साथ पूजा हो रही है। भरतेश्वरके ६४ हजार पुत्र हैं। उनमें दीक्षा लेकर जो गये हैं उनको छोड़कर बाकीके कुमार चामर लेकर भयभक्ति व आनन्दके साथ डोल रहे हैं। इसी प्रकार भरतेश्वरके दामाद ३२ हजार हैं । वे भी उनके साथ भक्तिसे चामर डुला रहे हैं। इस प्रकार कुछ कम एक लाख चामरको उस समय सम्राट्ने भगवंतके पूजा समारम्भमें डुलाया। इसी प्रकार भरतेश्वरके मित्र भी अनेक विधिसे पूजा समारम्भमें योग
फल पूजाके बाद रत्नसुवर्णादिकके द्वारा निर्मित फलपर्वतके समान करोड़ों अयोका अवतरण किया । देवगण जयजयकार कर रहे थे। भगवतको उन्होंने कितना अध्यं चढ़ाया, इसको समझनेके लिए यही पर्याप्त है कि उन अोके ऊपर जो कपर जल रहे थे उनको देखनेपर कपूरपर्वतकी ही पंक्तियों को हो आग लग गई हो ऐसा मालूम हो रहा था । सुन्दर मन्त्रपाठको उच्चारण करते हुए रत्नकलशोंसे समस्त विश्व