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भरतेश वैभव
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दीक्षाधिः
भगवन् ! भरतचक्रवर्तीके पुत्रोंके भव्यविनयका क्या वर्णन करूं? भगवेतके मुखसे प्रत्यक्ष उपदेशको सुनने पर भी दीक्षाको याचना नहीं की। अपितु भगवंतकी पूजाके लिए वे तैयार हुए ।
यद्यपि वे विवेकी इस बातको अच्छी तरह जानते थे कि भगवान् आदिप्रभु पूजाके भूखे नहीं हैं । तथापि मंगलार्थ उन्होंने पूजा की। अच्छे कार्यके प्रारम्भमें पहिले मंगलाचरण करना आवश्यक है। इस व्यवहारको एकदम नहीं छोड़ना चाहिए । इमो विचारसे उन्होंने पूजा को । ___ कुछ मिनटोंमें हो वे स्नानकर पूजाके योग्य शृंगारसे युक्त भये एवं पूजासामग्रो लेकर देवेन्द्रको अनुमतिसे पूजा करने लगे । कोई उनमें स्वयं पूजा कर रहे तो कोई पूजामें परिचारकवृत्तिका कार्य कर रहे हैं । अर्थात् सामग्री वगैरह तैयार कर दे रहे हैं। कोई उमी में अनुमोदना देकर आनंदित हो रहे हैं । उनको भक्तिका क्या वर्णन करें ? ___ओंकारपूर्वक मंत्रोच्चारण करते हुये होकार, अहंकारके साथ हूँकार को सुचनासे जलपात्रके जलको झंकारके शब्दसे अर्पण करने लगे। दोनों हाथोंसे सुवर्णकलशको उठाकर मन्त्रसामोसे भगवंतके चरणों में जलधारा दे रहे हैं । उस समय वहाँ उपस्थित देवगण जयजयकार शब्द कर रहे थे। सुरभेरी, शंख, वाद्य आदि लेकर साढ़ेबारह करोड़ तरहके बाजे उस समय बजने लगे थे। विविध प्रकारसे उनके जब शब्द हो रहे थे, मालूम हो रहा था कि समुद्रका हो धोष हो । गन्धगजारि अर्थात् सिंहके ऊपर जो कमलासन था उसके सुगन्धसे संयुक्त भगवंतके चरणोंमें उन भरतकुमारीने दिव्यगन्धका समर्पण किया जिस समय गन्धर्व जातिके देव जयजयकार शब्द कर रहे थे।
अक्षयमहिमासे युक्त, विमलाक्ष, विजिताक्ष श्री भगवंतके चरणोंमें जब उन्होंने भक्तिसे अक्षताका समर्पण किया तब सिद्धयक्षजातिके देव जय जयकार शब्द कर रहे थे। पुष्पबाण कामदेवके समान सुन्दर रूपको धारण करनेवाले वे कुमार कोटिसूर्यचन्द्रों के प्रकाशको धारण करने वाले भगवंतको पुष्पका जब समर्पण कर रहे थे तब उनका वपुष्पुलकित (शरीररोमांच) हो रहा था अर्थात् अत्यधिक मानन्दित होते थे | परसंगसे होकर आत्मानंदमें लोन होनेवाले भगवंतको वे अनुरागसे परमान्न नोगको नवीन सुवर्णपात्रसे समर्पण कर रहे हैं। सूर्यको दीपक दिखानेके