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भरतेश वैभव है, अन्य भेद नहीं है । एक उत्तम सोना ब दूसरा हल्का सोना, दोनों सोने ही कहलाते हैं । पीतल कांसा वगैरह नहीं। किट्टकालिमादि दोषोंसे युक्त सोना हल्का सोना कहलाता है। सर्वथा दोष राहत सोना उत्तम कहलाता है । उत्तम व हल्केका भेद है, अन्यथा सुवर्ण तो दोनों ही हैं। पुटपर चढ़ाने पर छह सात टंचका सोना भी शुद्ध होकर सौ टंचका सोना बन जाता है। उसी प्रकार कर्ममलको जलाने पर यह आत्मा भी परिशुद्ध होकर मुक्त होता है। ___ दोषसे युक्त अवस्थामें सोनेका रंग छिपा हुआ था, परन्तु पुटपर चढ़ानेके बाद दोष जल गये, वह उसका रंग बाहर आया, तब उसे विशुद्ध सोना कहते हैं। इसी प्रकार छिपे हुए गुण दोषोंके नाश होने पर अब बाहर आते हैं तब उसे मुक्तात्मा कहते हैं।
शक्तिकी अपेक्षा सर्व जोवोंमें ज्ञान, दर्शन, शक्ति व सुख मौजूद है, परन्तु सामर्थ्यसे कर्मको दूर कर जो बाहर उन गुणोंको प्रकट करते हैं धे ही मुक्त होते हैं, उस व्यक्तिका ही नाम मुक्ति है ।।
बीजके अन्दर स्थित वृक्ष शक्तिगत है। उसे बोकर अंकुरित कर पल्लवित कर जब वृक्ष किया जाता है उसे व्यक्त कहते हैं, इसी प्रकार बीवोंमें भी शक्ति व्यक्तिका भेद हैं। ___ोवतत्वकी कलाको ध्यानमें रखना, अब निर्जीव तत्वका निरूपण करेंगे। जीवतत्त्वको छोड़कर बाकी पाँच द्रव्य निर्जीव हैं। आकाश, धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल इन पांच द्रव्योंको सुख दुःखका अनुभव नहीं होता है ! उनको देखने व जाननेकी शक्ति नहीं है। इसलिए उनको निर्जीव अथवा अजोव कहते हैं। उनमें चार द्रव्य तो दृष्टिगोचर होते नहीं हैं । परन्तु पुद्गल तो दृष्टिगोचर होता है। पातगर्भ में वह पुद्गलद्रव्य सर्वत्र भरा है । पुद्गलके छह भेदोंका वर्णन पहले कर ही चुके हैं । । __स्थूलस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, ये पुद्गलके तीन भेद तो सबको दृष्टिगोचर होते हैं । परन्तु बाकी के तीन भेद सो किसीको दृष्टिगोचर नहीं होते हैं । कर्म बगंणा नामक सूक्ष्मपुद्गल स्निग्ध व रूक्ष रूपमें है । स्निग्ध पूगल तो रागरूप है और रूक्षद्गल द्वेषरूप है यह पुद्गल आत्मा प्रदेश में बंधको प्राप्त होता है।
भोजन करना, स्नान करना, सोना इत्यादि विषयोंको मनुष्य प्रत्यक्ष देखता है। यह सब पुद्गलकी ही किया है। बाको पाँच द्रव्योंको तो कौम देखता है ? नदी, पानी, बरसात, खेत, घर, सम्बू, हवा, शोत,