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भरतेश वैभव एक कुमार बहानेके लिए एक कोरी पुस्तकको देखते हुए कविताका पठन कर रहा था एवं अपूर्व अर्थ का वर्णन कर रहा था। उसे सुनकर उपस्थित अन्य कुमार चकित हो रहे थे। तब उन लोगीने यह पूछा कि वाह ! बहुत अच्छी है, यह किसकी रचना है ? तब उस कुमारने उत्तर दिया कि यह मैं नहीं जानता हूँ। तब अन्य कुमारोंने पुस्तकको छोनकर देखो तो वह खाली हो थी, तब उसकी विद्वत्ताको देखकर वे प्रसन्न हुए।
विशेष क्या ? भरतपुत्र जो कुछ भी बोलते हैं वह आगम है, जरासे ओठको हिलाया तो भो उससे विचित्र अर्थ निकलता है। जो कुछ भी वे आरक्षण करते हैं वही पुराण बन जाता है। ऐसी अवस्थामें काव्यसागरमें वे गोता लगाने लगे उसका वर्णन क्या किया जा सकता है ? ___ मुक्तक, कुलक इत्यादि काव्यमार्गसे भगवान् अहंन्तका वर्णन कर मुक्तिगामीजा पुत्रोंने सातमकताका लाभेट भपितके मागसे वर्णन किया।
बाहरके विषयको जानना व्यवहार है, अन्तरंग विषयको अर्थात् अपने अन्दर जानना वह निश्चय है। बाहरकी सब चिन्ताओंको दरकर अपने आत्माके स्वरूपका उन्होंने बहुत भक्तिसे वर्णन किया ।
भूमिके अन्दर आकाशको लाकर गाड़नेके समान इस शरीरमें आत्मा भरा हुआ है । यह अत्यन्त आश्चर्य है।
यदि घरमें आग लगी तो घर जल जाता है, परन्तु घरके अन्दरका भाकाश नहीं जलता है। इसी प्रकार रोग-शोकादिक सभी बाधायें इस शरीरको हैं, आत्माके लिए कोई कष्ट नहीं है।
अनेकवर्णके मेघोंके रहनेपर भी उनसे न मिलकर जिस प्रकार आकाश रहता है, उसी प्रकार रागद्वेषकामक्रोधादिक विकारों के बीच आत्माके रहने पर भी वह स्वयं निर्मल है। ___ आत्माको पञ्चेन्द्रिय नहीं है, वह सर्वाङ्गसे सुखका अनुभव करता है । पंचवर्ण उसे नहीं है केवल उज्ज्वल प्रकाशमय है। यह आश्चर्य है। आत्माको कोई रस नहीं है, गंध नहीं है । शरीरमें रहनेपर भी वह शरीरमें मिला हुआ नहीं है। फिर यह कैसा है ? अत्यन्त सुखो है, सुजान व उज्ज्वल प्रकाशसे युक्त होकर आकाशने ही मानो पुरुषरूपको धारण किया है। उस प्रकार है । आस्माको मन नहीं है, वचन नहीं, शरीर नहीं है । कोष, मोह, स्नेह, जन्म-मरण, रोग, बुढ़ापा आदि कोई आत्माके लिए नहीं है। ये तो शरीरके विकार हैं।