________________
भरतेश वैभव
१११
है, उसी प्रकार अपने कामविकारको तृप्ति के लिए यदि स्त्रियोंको भोगे तो वह विकार और भी बढ़ता जाता है, तृप्ति होती नहीं । और स्त्रियों की आशा भी बढ़ती जाती है ।
अग्नि पानीसे बुझती है । परन्तु घो से बढ़ती है। इसी प्रकार कामाग्निसच्चिदानन्द आत्मरससे बुझती है और स्त्रियोंके संसर्गसे बढ़ती हैं । भोग भोग से भोगकी इच्छा बढ़ती है, यह नियम है । केवल कामाग्नि नहीं, पंचेन्द्रिय के नामसे प्रसिद्ध पंचाग्नि उनके लिए इष्ट पदार्थों के प्रदान करने पर बढ़ती है । परन्तु उनसे उपेक्षित होकर आत्माराममें मग्न होने पर वह पंचाग्नि अपने आप बुझती है ।
स्नान, भोजन, गंध, भूषण, राधा, ताग्यू, दुकूल वस्त्र हत्यादि आत्माको तृप्त नहीं कर सकते हैं। आत्माकी तृप्ति आत्मध्यान से ही हो सकती है ।
इसलिए आज अल्पसुख की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यदि संसार के मोहको छोड़कर ध्यानका अवलम्बन करें तो वह ध्यान आगे जाकर अवश्य मुक्तिको प्रदान करेगा। इसलिए आज इधर-उधर के विचारको छोड़कर दीक्षाको ग्रहण करना चाहिए । इस बातको सुनते हो सब लोगोंने उसे हर्षपूर्वक समर्थन किया ।
अपन सब कैलास पर्वतपर चलें, वहाँपर मेरुपर्वत के समान उन्नत रूप में विराजमान भगवान् आदिप्रभुके चरणों में पहुँच कर दीक्षा लेवें ।
इस बचनको सुनते ही सब कुमार आनन्दसे उठ खड़े हुए। उनमें कोई-कोई कहने लगे कि हम लोग पिताजीके पास पहुँचकर उनकी अनुमति लेकर दीक्षा लेनेके लिए जायेंगे। उत्तरमें कोई कहने लगे कि यदि पिताजी के पास पहुँचे तो दीक्षा के लिए अनुमति नहीं मिल सकती है। फिर यह कार्य नहीं बन सकता है ।
और कोई कहने लगे कि पिताजीको एक बार हैं. परन्तु हमारी माताओंकी अनुमति पाना असम्भव पास जाना उचित नहीं है। हम हमारी माताओंके पास जाकर कहें कि दीक्षा के लिए अनुमति दीजिए, तो क्या वे सीधी तरहसे यह कहेंगी कि बेटा ! जाओ, तुमने बहुत अच्छा विचार किया है । यह कभी नहीं हो सकता है। उलटा दे हमारे गले पड़कर रोयेंगी। फिर हमारा जाना मुश्किल हो जायगा ।
समझाकर आ सकते है, इसलिए उनके