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भरतदा वैभव
लोकालोकके समस्त पदार्थोंको एकाणुमात्रमें सुज्ञान रूपी कमरेमें रख लिया है जिन्होंने ऐसे एकोदेव एषोऽद्धतरूपो ब्रह्माकीर्णकका उन्होंने दर्शन किया । अज्ञानरूपी अन्धकारको भगाकर विज्ञान सूर्यको धारण करनेवाले सुज्ञान व दर्शनरूपो शरीरको धारण करनेवाले सर्वज्ञको उन्होंने देखा । सातिशय भोगमें रहनेपर भी अपनो आत्माको देखनेसे व घ्या. नाग्निके बलसे जन्मजरामरणरूपी त्रिपुरको जलानेवाले देवका उन्होंने दर्शन किया।
वेद, सिद्धान्त, तर्क, आगम इत्यादिका ज्ञान होनेपर भी उसके झगड़ोंसे रहित आदि अनादि कल्पनाओंसे परे आदिवस्तुको उन्होंने देखा। __वस्त्राभूषणोंसे रहित होकर सुन्दर, स्नान भोजन न करके सुखो, स्त्रियोंके बिना ही आनन्द प्राप्त, देखने, बोलने व मनके विचारमें आनेपर भी वर्णन करने के लिए असमर्थ ऐसे जगत्पतिका उन्द्रोंने दर्शन किया ।
कोटि चन्द्रसूर्योको एकत्रित कर सामने रखनेपर उससे भी बढ़कर देहकांतिको धारण करनेवाले कालकर्मक वैरी भगवंतको उन कुमारोंने देखा । निर्मल निर्भेदभक्ति ही माता है श्रीमंदरस्वामी ही पिता है इस प्रकारके विचारको रखनेवाले रत्नाकर सिद्ध के बड़े बापको उन कुमागेंने देखा।
मार्गमें वे कुमार विचार कर आये थे कि हम जानेके बाद साष्टांग नमस्कार करेंगे, स्तुति करेंगे बादि । परन्तु यहाँपर भगवंतके त्रिलोकातिशायो रूपको देखकर वे सब बातोंको भूल गये। आश्चर्य से खड़े होकर भगवंतकी ओर देखने लगे । भमवंतके श्रीमुखमे, कंठमें, दीर्घ भुजाओं में, हृदयमें, नाभिकूपमें चरणों में सुन्दर पादकमलोंमें इनकी दृष्टि गई । वहाँसे वापस माना नहीं चाहती थी । वस्त्राभूषणोंकी बात ही नहीं है। रत्न दर्पण ही जिनेन्द्र हुआ है, इस प्रकार सुन्दररूपको धारण करनेवाले भगवंत के देहमें ही उनकी आंखें फिरने लगी। ___ मस्तकसे पादतक पादसे मस्तकतक बराबर उनकी आंखें चढ़ती हैं। केवल आंखें ही काम कर रही हैं । ये कुमार तो आश्चर्यसे अवाक् होकर पुतलियों के समान खड़े हैं । वहाँको निस्तब्धता व कुमारोंके मौनको भंग करते हुए स्वर्गाधिपति देवेन्द्रने प्रश्न किया कि कुमार! आप लोग भगवंतको देखकर उनके चरणों में नमस्कार न कर यों ही मौनसे खड़े क्यों है ? इसनेमें वे कुमार जागृत हुए म आनन्दसे कहने लगे कि हाँ ! भूल गये, हम लोगोंको बाल्यलीला अभीतक गई नहीं। तीन छत्रके स्वामी है
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بچه ها با این بیبم
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FIN