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भरतेश वैभव सुगन्धित पुष्पोंको ओर झुक जाते हैं. उसी प्रकार उनके चरणोंमें तीन लोक ही झुक जाता है।
सुजयास्म ! सुनो । सुकांतात्मक ! अरिविजयात्म ! आदि सभी कुमार अच्छी तरह सुनो! दीक्षाके बराबरी करनेवाला लाभ दुनियामें दूसरा कोई नहीं है। शुक्लध्यानके लिए वह जिनदोक्षा सहकारी है, शुक्लध्यान मुक्तिके लिए सहकारी है । शुक्लध्यानके द्वारा कर्मोको नाश कर मुक्तिको न जाकर संसार में परिभ्रमण करनेवाले सचमुच में अविवेकी हैं इस प्रकार बहुत खूबी के साथ जिनदोक्षाका वर्णन रविकीतिराजने किया। __इस कथनको सुनकर वहां उपस्थित सर्व कुमारोंने उसका समर्थन किया । एवं बहुत हर्ष व्यक्त करते हुए अपने मनमें दोक्षा लेनेका विचार करने लगे। उन्होंने विचार किया कि जवानो उतरनेके पहिले, शरीरको सामर्थ्य घटनेके पहिले एवं स्त्री-पुत्र आदिको छाया पड़नेके पहिले ही जागृत होना चाहिए। अब हम लोग वयस्क हुए हैं, यह जानकर पिताजी हमारे साथ एक-एक कन्याओंका सम्बन्ध करेंगे । स्त्रियोंके पाशमें पड़नेका जीवन मकालोका तेलके अन्दर पड़नेके समान है।
स्त्रोके ग्रहण करनेके बाद सुवर्णको ग्रहण करना चाहिए, सुवर्णको ग्रहण करने के बाद जमीन जायदादको ग्रहण करना चाहिए; स्त्री, सुवर्ण व जमोनको ग्रहण करनेवाले सज्जन जंग चढ़े हुए लोहेके समान होते हैं। वस्तुतः इन तीनों पदार्थोके कारणसे यह मनुष्य संसारमें निरुपयोगी बनता है । और इसी कारणसे मोहको वृद्धि होकर उसे दोघं संसारी बनना पड़ता है। सबसे पहिले अपने इन्द्रियोंके तृप्तिके लिए उसे, कन्याके बंधनमें पड़ना पड़ता है, अर्थात् विवाह कर लेना पड़ता है, तदनन्तर कन्याग्रहणके बाद उसके लिए आवश्यक जेवर वगैरह बनवाने पड़ते हैं, एवं अर्थसंचय करना पड़ता है, एवं बादमें यह भावना होतो है कि कुछ जमीन जायदाद स्थावर सम्पत्ति निर्माण करें। इस प्रकार इन तोनों बातोंसे मनुष्य संसार बन्धनमें अच्छी तरह बंध जाता है ।
यद्यपि हम लोगोंने कन्याका ग्रहण किया तो हमें सुवर्ण, सम्पत्ति राज्य आदिके लिए चिंता करनेको जरूरत नहीं है । क्योंकि पिताजीके
(१) हेणु (कन्या) (२) होन्नु (सुवर्ण) (३) माणु (जमीन) मूल ग्रन्थकारने हेण्णु, होन्नु, माणु इन तीन शब्दों से अनुप्रास मिलानेके साथ-साथ इन तीनोंको हो संसारके मूल होनेका अभिप्राय व्यक्त किया है।