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भरतेश वैभव ........... चमकूनेवाली बिजली की मति यह कहासे आई ? अथवा अत्यन्त
निमल यह स्फटिको मूर्ति कहाँसे आई? इस प्रकार आश्चर्य के साथ वह ध्यानी उम आम्मा को देखता है ।
जिम प्रकार स्वच्छ दर्पणमें बाह्य पदार्थ प्रतिबिवित होते हैं, उसी प्रकार अनेक प्रकार के मंसार सम्बन्धो मोहक्षोभसे रहित उम निर्मल आत्मामें आत्मा जब ठहरता है, तब उसे अग्जिल प्रपंच ही देखने में आते है।
उमममय स्वयं आश्चर्य होता है कि यह आत्मा इस अल्प देहमें आया स ? इममें ता जगभर पसर योग्य प्रकाश है। फिर इसे शगैररूपी जरासे स्थानमें किसने भरा ? मर्व आकाश प्रदेश में व्याप्त होने योग्य निर्मलता , ज्ञान इसमें है । फिर इस जसे स्थानमें यह क्यों रुका ? आश्चर्य है।
मंत्री ! उस समय झर-झर होकर कर्म मरने लगता है। और चित्कला धग धग होकर प्रचलित होती है । एवं अगणित सुख जुम-जुम कर बढ़ता जाता है । यह ध्यानीके लिए अनुभवगम्य है । दूसरोंको दीव नहीं सकता है।
गर्मी के कड़क धूपके बढ़ते जानेपर जिस प्रकार चारों और व्याप्त बरफ पिघल जाता है, उसो प्रकार निर्मल आत्माके प्रकाशमें कामणि, तेजस शरीर पिघलते जाते हैं।
उस समय आत्माको देखनेवाला भी वही है देखे जानेवाला भो नही है, देखनेवाली दृष्टि भी वही है । इसे सुनकर आश्चर्य होगा कि ध्यानके फलसे आगे शप्त होनेवाली मुक्ति भी वही है । इस प्रकार स्वस्वरूपी है। तीन शरीरके अन्दर रहनेपर उस आत्माको संसारी कहते हैं। ध्यानके द्वारा उन तीन शरीगेका जब नाश किया जाता है तब वह अपने आप लोकाग्र-स्थान में जा विराजमान होता है । उसे ही मुक्ति कहते हैं।
यह आत्मा स्वयं अपने आपको देखने ला जाये तो शारीरका नाश होता है । दुमरे कोई हजार उपायोंसे उसे नाश करनेके लिए प्रयत्न करे तो भी वह अशक्य है । अपनेसे मिन्न फमोको नाश कर यह स्वयं मात्मा भक्तिसाम्राज्य को पाता है । उसे वहाँ उठा ले जानेवाले, वहाँ रोकनेवाले कौन हैं ? कोई नहीं है। ___ मंत्री ! लोकमें मुक्ति प्रदान करनेवाले गुरु और देव कहलाते हैं। गुरु और देव तो केवल मुक्तिके मार्गको बतका सकते हैं। कर्मनाश तो स्वयं