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मोश देय
आनन्दसे भेट रखकर युवराजको नमस्कार किया । अर्ककीर्ति कुमारने उन सबको उठनेके लिए कहा व अकंपनराजासे प्रश्न किया कि राजन् ! तुम्हारे साथ जो राजा लोग आये हैं उनके आनेका क्या कारण है ? हम लोग जहाँ-तहाँ देशको शोभा देखकर आ रहे हैं। अभीतक देखने में आया था कि तत्तद्देशके राजा ही हमारे स्वागतके लिए आते थे। परन्तु यहाँ और ही कुछ बात है। तुम्हारे साथ अन्य देशके राजा भी मिलकर आये हैं, यह आश्चर्य की बात है। इसका कारण क्या है ? क्या तुम्हारे यहां कोई पूजा, प्रतिष्ठा उत्सव चालू है या विवाह ? नहीं-नहीं, ये तो स्वयंवरके लिए मिले हुए मालूम होते हैं, क्योंकि इनकी सजावट ही इस बातको कह रही है । तो भी वास्तविक बात क्या है ? कहो।।
उत्तरमें राजा अपनने निवेदन किया कि स्वामिन् ! आपने जो आखिरका वचन कहा वह असत्य नहीं है। मेरी एक पुत्री है। उसके स्वयंवर के लिए ये सब एकत्रित हुए हैं। आपके पधारनेसे परम सन्तोष हुआ, सोनेमें सुगन्ध हुआ, आप लोगोंके पधारनेसे साक्षात् भरतेशके आगगनका सन्तोष हुआ। आप दोनोंके पादरजसे मेरा राज्य पवित्र हुआ इस प्रकार बहुत सन्तोष के साथ राजा अकंपनने निवेदन किया । इसी प्रकार मेघेश (जयकुमार) आदि अनेक राजाओंने उन दोनों कुमारोंका स्वागत करनेके बाद अनेक भूचर खेचर राजाओंके साथ राजा अकंपनने उनको काशी नगरमें प्रवेश कराया ।
नगरमें प्रवेश करनेके बाद अर्कोतिकुमारको मालूम हुआ कि अर्कपन राजाने हम लोगोंके लिए राजमहलको खाली करके दूसरे स्थानमें निवास किया है । ऐसी हालतमें क्या करना चाहिए इस विचारसे अर्ककीति आदिराजकी ओर देखने लगा। आदिराजने कहा कि अपने अन्य स्थान में ही मुकाम करें। तब अर्ककोतिने अकंपनसे कहा कि आदिराज क्या कहता है सुनो। परन्तु अकंपनका आग्रह था कि अपने महल में ही पदार्पण करना चाहिये । तब आदिराजने कहा कि अपने महलको तुमने यदि हमारे लिए खाली किया तो क्या वह हमारा हो गया? कभी नहीं ! हम लोग यहां नगरको गलबलीमें नहीं रहना चाहते हैं। इसलिए नगरके बाहर किसो उद्यानमें कोई महल हो तो ठीक होगा । हम वहींपर रहेंगे। तब अकंपनने कहा कि बहुत अच्छा, तैयार है, लीजिए ! चित्रानंद नामका देव पूर्वजन्मका मेरा मित्र है। उसने स्वयंवरके प्रसंगको लक्ष्यमें रखकर दो महलोंका निर्माण किया है। उस स्थानको आप लोग देखें।