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भरतेश वैभव करते हैं ? इसलिए सब लोगोंने विचार किया कि किसोको भी उस कन्याकी आवश्यकता नहीं है । युवराजके लिए वह कन्यारत्न मिलना चाहिए। हाथी, घोड़ा, रथ, रत्न, कन्या आदियोंमें उत्तम पदार्थ महानरेंद्रोंके सिवाय दूसरोंको कैसे मिल सकते हैं। इसलिए वह कन्यारत्न तुम्हारे सिवाय दूसरोंके योग्य नहीं हैं। इस प्रकार इन सब राजाओंने स्वीकृत किया। अष्टचंद्रोंको भी यह बात पसन्द आई। हम दोनों मंत्रियोने सलाह को। हमारे हृदय में जो बाद अंची जमे यापकी सेवामें निवेदन किया अब आप इस सम्बन्धमें विचार करें। ____ अकोतिने उत्तरमें विचार कर कहा कि आप लोग जैसा कहते हैं वैसा ही यदि कन्याके पिताने भी कहा तो मैं इसे स्वीकार कर सकता हूँ। मैं स्वयं कन्याको मांगना नहीं चाहता, मैं स्वयं मागू तो उसके मिलने में क्या बड़ी बात है।
तब मंत्रीने कहा कि राजन् ! तुम्हें उस बातके लिए प्रयत्न करनेकी जरूरत नहीं है । हम लोग लाकर उपायसे संधान कर देंगे ।
अर्ककीति विचारमें पडा । इतनेमें आदिराजने कहा कि भाई ! स्वयंबरके नियमानुसार कन्याने किसीके गलेमें स्वेच्छासे माला डाल दी तो उसमें विरोध करना उचित नहीं है । परन्तु जबर्दस्ती माला डलवानेसे कोई विवाह हो सकता है ? जब सुलोचना की इच्छा न होते हुए भी उसे मजबूर किया तो वह कदाचित् दीक्षा ले लेगो । जिस दासीने माला उसके हाथसे लेकर उसके गले में डाली उसीको मेघेश्वरकी सेवाके लिए प्रसन्नता के साथ दे सकेंगे । जब कि कन्याको उसके साथ विवाह करनेको इच्छा नहीं है, युवराजसदृश पति उसके लिए मिल रहा है तो सब लोग हर्षके साथ इसे स्वीकृत करेंगे । जाइये ! भाईके लिए उस कन्याकी योजना कीजिएगा । इस प्रकार नादिराजके वचनको सुनकर सब लोग प्रसन्न हुए।
पुनः मंत्रीने कहा कि मैं अकंपन राजाके पास जाता हूं। अकेला जाऊँ. तो प्रभाव नहीं पड़ेगा । सेना, परिदार, वैभव आदिके साथ जाना चाहिए। तब राजा अकंपनको उत्साह पैदा होगा। इसलिए सेनाके साथ युक्त होकर जाता हूँ और यह कार्य कर लाता हूँ।
इस प्रकार अकंकीतिको बातोंमें फंसाकर उइंडमति मंत्री दो हजार गणबद्ध देवोंको अपने साथ लेकर अष्टचंद्रराजाओंके साथ रवाना हुआ।
जो मंत्री अकीतिके सामने यह कहकर आया है कि मैं उपायसे राजा अपनको मनाकर तुम्हारे लिए कन्याकी योजना कराऊँगा, उसने