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भरतेश वैभव
रोकनेवाले नहीं थे । चक्रवर्तीका वह मित्र है । जिस समय वह अर्ककोतिकुमारके पास जा रहा था उस समय चेत्रधारी लोग जोर-जोर से कह रहे थे कि स्वामिन् ! नागदेव आ रहे है । अवलोकन करें ।
नागरने युवराज के पास पहुँचकर उसे अनेक प्रकारकी उत्तम वस्तुओं को भेंट देकर साष्टांग नमस्कार किया एवं युवराजकी जय-जयकार करते हुए उठा । पुनः मंत्रीको भेंट, दक्षिणा आदि मित्रोंको भेंट मर्पणकर नमस्कार किया ।
युवराजने भी उसे अपने पासमें बुलाकर पास में ही एक आसन दिया। पास में बैठे हुए आदिराज कुमारको भी विनयके साथ नमस्कार कर उस आसनपर नागर बैठ गया ।
अर्ककीर्ति उपस्थित राजाओंसे कहने लगे कि आप लोग देखो कि नागरका प्रेम कितना जबर्दस्त है । हम लोग परदेशमें जायें तो भी वह अनेक कष्ट सहन कर आया है ।
राजाओं ने कहा कि युवराज ! आपको छोड़कर कौन रह सकते हैं ? आपका दरबार किसके मन को हरण नहीं करेगा। फिर नागरोत्तम क्यों नहीं आयेगा ? यह सब आपका हो प्रभाव है।
अर्ककीर्तिने नागरसे प्रश्न किया कि नागर ! क्या पिताजी कुशलसे हैं । घरमें सब कुशल तो है ? विमानमें आने योग्य गड़बड़ी क्या है ? जरा जल्दी बोलो तो सही 1
उठ खड़े होकर नागरने विनती की कि स्वामिन्! आपके पिताजी अत्यन्त सुखपूर्वक हैं । सुवर्णमहल में रहनेवाले सभी सकुशल हैं। आपके भाई सबके सब सुखपूर्वक हैं। यानमें आनेसे देरी होगी इसलिये मैं विमान में बैठकर आया । इतनी जल्दी क्या थी ? इसके उत्तर के लिए एकांतकी आवश्यकता है |
अर्ककीर्तिने कहा कि अच्छी बात, अब तुम बैठकर बोलो।
नागर बैठ गया, सब लोग समझ गये । वहसि सबको भेजकर अकंको तिने जयकुमार आदि कुछ प्रधान प्रधान व्यक्तियोंको वहींपर ठहराया और नागर से कहा कि बोलो, अब एकांत ही है । क्योंकि ये सब अपने ही हैं, और सुनने योग्य हैं। तब नागर ने अपने वृत्तांतको कहना प्रारंभ किया। उसके बोलनेके चातुर्यका कौन वर्णन कर सकता है।
स्वामिन् ! जबसे आप दोनों इधर आये हैं तबसे चक्रवर्ती प्रतिनित्य