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भरतेश वैभव इतनेमें आदिराजने कहा कि भाई ! पिताजीको बड़ी चिन्ता हुई ! अब इस समाचारको सुनकर अपने यहां आरामसे बैठे रहें यह उचित नहीं है । अब आगे प्रस्थान कर देना चाहिये । सेना, हाथी, घोड़ा वगैरह अष्टचंद्र राजाओंके साथ पीछेसे आने दो । अपन आज आये हुए मित्रके साथही विमानपर चढ़कर जावें । अब देरी नहीं करनी चाहिए।
तब नागरांकने कहा कि इतनी गड़बड़ी क्या है ? आप लोग आगे जाकर सब देशोंको देखकर आवं । मैं आज जाकर स्वामीके चित्तको समाधान कर दूंगा । आप लोग जयकुमारके साथ सावकाश आवै । अभी कोई गड़बड़ी नहीं है । भरतजीने भी ऐसी ही आज्ञा दो है।
तब दोनों भाइयोंने कहा कि ठोक है। हम लोग बादमें आयेंगे। परन्तु पिताजीके चरणोंका दर्शन जबतक नहीं होगा तबतक हम लोग द्रथ और घी नहीं खायेंगे। तव नागरांकने कहा कि तम लोग ऐसा मत करो, अगर सम्राट्ने सुन लिया तो वे नमक छोड़ देंगे, ऐसा नहीं होना चाहिए । आप लोग सुखके साथ सब देशको देखते हुए आवें, हम और भरतजी सुखके साथ रहेंगे । और लोग भी सुखके साथ अपना समय व्यतीत करें। हमारे स्वामीकी कृपासे सब जगह सुख ही सुख होगा।
राषा अकंपनने नागरांकसे कहा कि नागरोत्तम ! यह सब ठोक हुआ। अब तुम आज क्यों जा रहे हो । हमारे महल में आठ दिन विश्रांति लेकर बादमें जाना । तुम हमारे स्वामी चक्रवर्तीके मित्र हो, बार बार तुम्हारा बाना नहीं बन सकेगा । इसलिए हमारे आतिथ्यको स्वीकार कर जाना चाहिए, इस बातका समर्थन जयकुमारने भी कर दिया।
उत्तरमें नागरांकने कहा रहने में कोई धापत्ति नहीं है, क्योंकि हमारे युवराजका यह श्वसुर-गृह है । परन्तु राजन् ! जब सम्राट् चिन्ता पड़े हुए हैं ऐसी अवस्थामें मैं यहाँपर आरामसे रहूँ क्या यह उचित हो सकता है?
राणा अकंपनने कहा कि ठीक है, तब तो देरी न करो, स्नान भोजन करके कल यहाँसे चले जाना । तब अर्ककोतिने भो कहा कि ठोक है, कल नहीं परसों चले जाना, उसमें क्या बात है। __नागरांकने कहा कि स्वामीको दुःखित' अवस्थामें छोड़कर स्नान भोजनादि काममें समय बिताना ठीक नहीं है, उस स्नान भोजन के लिए विणकार हो । इसलिए अब मुझे आप लोग रोकनेकी कृपा न करें।
इतनेमें आदिराजने कहा कि ठीक है, हम लोग मो रुक गये, नागरांक