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मरतेश वैभव भाई विचार करो, एक कन्याकी सब लोग अपेक्षा करें क्या यह उचित है ? जब वह एकको पसन्द करेगी तब बाकीके लोग तो माह ही ठहरते हैं न? इसलिए अपनेको वहां स्वयंवर मंडपमें नहीं जाना चाहिए। अपन अपने मुकामके स्थानमें ही रहें।
तब अकीर्ति कहने लगा कि यदि उन्होंने पाँव पकड़कर आग्रह किया तो क्या करना चाहिये यदि उस हालतमें भी हम नहीं गये तो राजा अकंपनको बड़ा दुःख होगा और बाकीके राजकुमारोंको भी बुरा लगेगा। इसलिए क्या करना चाहिये ? तब आदिराजने कहा कि इसके लिए मैं एक उपाय कहता हूँ। जब आपको वे आग्रह करनेके लिए आयें तब आप उनसे कहें कि राजा अकंपन ! तुमने जिस प्रकार पत्र भेजकर स्वयंवरके लिए और लोगों को बुलाया है वैसे हम लोगोंको नहीं बुलाया है । इसलिए हम लोग स्वयंवर मंडपमें नहीं आ सकते हैं।
इसे सुनकर अर्ककीर्तिने कहा कि शाबास भाई ! शाबास! मेरे हुपद जो या कहो तुमने कहा ! म है, ऐसा ही फलें।
इस प्रकार दोनों विचार करके आनन्दके साथ काशीको ओर आ रहे हैं।
युवराज अर्ककोति काशीकी ओर आ रहे हैं, यह सुनकर अकंपनको बना हर्ष हुआ। उन्होंने निश्चय किया कि सम्राटुका पुत्र अपनी पुत्रीके विवाहके लिए आ रहा है। यह मेरे भाग्यकी बात है । हजारों भूचर व खेचर राजपुत्रों के आनेसे क्या? जब महाचक्रधारी चक्रवर्तीके पुत्र आ रहे रहे हैं । मैं सचमुच में भाग्यशाली हूँ। मेरे स्वामोके सुपुत्र किसी कारणसे
आ रहे हैं उनका आदर-सत्कार योग्य रीतिसे होना चाहिये। यदि उसमें किसी भी प्रकारको न्यूनता रहेगी तो उससे मेरो हानि होगी। इसलिए अत्यन्त भय व भक्तिसे इनके स्वागतको व्यवस्था करनी चाहिये । इस विचारसे अकंपन राजा उस व्यवस्थामें लगा। ___ राजमहलको खाली कराकर स्वयं अकंपन दूसरे एक घरमें निवास करने लगा। पुरमें अनेक प्रकारकी शोभा की गई । सब जगह समाचार दिया गया कि कल या परसोंतक सम्राट्के सुपुत्र आ रहे हैं।
__ स्वयं राजा अपन अपने पुरजन व परिजनोंके साथ और अनेक देशके राजा महाराजाओं के साथ युक्त होकर उनके स्वागतके लिए निकला है। हायमें अनेक प्रकारको भेंट, वस्त्र, रत्न वगैरह लेकर जा रहे हैं। एक दो मुक्कामके बाद आकर सबने युवराजका दर्शन किया, परम