________________
भरतेश वैभव परम संभ्रमके साथ दोनों राजपुत्र उस उद्यानकी ओर जाकर महलमें प्रविष्ट हुए। वहींपर उन्होंने मुकाम किया। उनके परिवार, सेना आदिने भी उस बगीचेमें बाहर मुकाम किया। ___ राजा अकंपनने पांच दिनतक अनेक वस्तुओंको भेंटमें भेजकर उन राजकुमारोंका हर प्रकारसे आदर-सत्कार किया। तदनन्तर अनेक राजाओंके साथ आकर राजा अकंपन निवेदन करने लगे कि युवराज ! मेरी एक विनती है। आप दोनोंके पधारनेसे पहिले निश्चित किये हए मुहूर्तको टालकर दो चार दिन व्यतीत किया। अब स्वयंवर के लिए कलका मुहर्त बहुत अच्छा है। सो आप दोनों भाई स्वयंवर मंडपमें पधारकर उस विधाहमें शोभा लावें और हम सबको आनन्दित करें।
उत्तरमें अर्ककीतिने कहा कि अकंपन ! हम लोग स्वयंवर मंडपमें नहीं आयेंगे, हमें आग्रह मत करो | तुम निश्चित किये हुए कार्यको करो, हमारी उसमें सम्मति है। जाओ ! अगरने पुनश्न प्रार्थना की कि युवराज! आप लोगोंके न आनेपर विवाह मंडपकी शोभा ही क्या है ? अत्यन्त वैभवके साथ आप लोगोंको हम ले जाएंगे। इसलिए आपको पधारना ही चाहिये । अनेक राजाओं के साथ जब इस प्रकार अपनने आग्रह किया तब अकोतिने स्पष्ट रूपसे कहा कि अपन ! सुनो, जेसे तुमने स्वयंवरके लिए सबको निमंत्रणपत्र भेजा था, वैसा हमें तो नहीं भेजा था । हम तो देशमें विहार करते-करते राहगीर होकर यहां पर आये हैं। स्वयंवरके लिए नहीं आये हैं। इसलिए कल्यालयमें अर्यात स्वर्गवरमंडपमें पदार्पण करना क्या यह धर्म है। इसलिए हम लोग नहीं आएंगे। ये सब राजा खास स्वयंवरके लिए ही आये हुए हैं। उनके साथ में तुम इस कार्यको करो। हम एक चित्तसे इसमें अनुमति देते हैं। जाओ, अपना कार्य करो | इस प्रकार समझाकर अर्ककात्तिने कहा।
अकंपन काँपते हुए कहने लगा कि युवराज ! आप लोगोंको पत्र न भेजने में मेरा कोई खास हेतु नहीं है । सम्राट्के पुत्रोंको में एक किकर राजा किस प्रकार पत्र भेजू, इस भवसे मैंने आप लोगोंको पत्र नहीं भेजा और कोई अहकारादि भावनासे नहीं 1 इसलिए आप को अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये। इस बातको अकंपनने बहुत विनयके साथ कहा।
अर्ककोति कहने लगा कि समान वंशवालोंको बुलानेके लिए भय खानेकी क्या जरूरत है ? संपत्ति में अधिकता हो तो क्या है ? परन्तु