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भरतेश वैभव भरतजीने उसी समय बाहुबलिकेवली के चरणोंमें साष्टांग नमस्कार कर अनेक देवों के साथ अयोध्याकी ओर प्रस्थान किया।
तदनंतर बाहुबलि केवलीको गंधकुट का कैलास पर्वतकी ओर विहार हुआ । उस समय अनेक देवादिक जयजयकार शब्द कर रहे थे । इधर अपने परिवारके साथ भरतजी अपने नगरको ओर जा रहे हैं। ___मार्गमें भरतजीके हृदयमें अनेक विचारतरंग उठ रहे हैं। आनंदसे हृदयकमल विकसित हुआ। ध्यान-सामर्थ्य से जब भुजबलिका कर्म दूर हुआ एवं केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई, इस बातको बार-बार याद कर आनंद मान रहे हैं । उनको इतना आनंद हो रहा है कि बाहुबलिको कैवल्य प्राप्त नहीं हुआ है, अपितु स्वतःको जिनपद प्राप्त हुआ हो । इस प्रकार आनंदित होते हुए वे अयोध्यापुरमें प्रवेश करके महल में पहुंचकर कैलासको जानेके बाद बाहुबलिको कैवल्य प्राप्त होनेतकका सर्व वृत्तांत माता व अपनी पलियोंसे कहकर आनंदसे रहने लगे।
भरतजी सचमुचमें पुण्यशाली महात्मा हैं। क्योंकि जिनके कारणसे बड़े-बड़े योगियोंके दृश्यका भी शल्य दूर हो एवं उनको ध्यानको सिद्धि होकर केवल्यकी प्राप्ति हो, उनके पुण्यातिशयका वर्णन क्या करें ? इसका एकमात्र कारण यह है कि उन्हें मालन है फियाम साधःकी विधि क्या है ? परपदार्थोके कारणसे चंचल होनेवाले आत्माको उन विकल्पोंसे हटानेका तरीका क्या है ? उसी अनुभवका प्रयोग बाहुबलिके शल्यको दूर करनेमें उन्होंने किया।
इसमें अलावा वे प्रतिनित्य व परमात्माको इस रूपमें स्मरण करते हैं कि
हे परमात्मन् ! आप पहिले अल्पप्रकाशरूप धर्मध्यानसे प्रकट होते हैं। चित्तका नैर्मल्य बढ़नेसे अत्यधिक उज्ज्वल प्रकाश रूप शुक्लध्यानसे प्रकट होते हैं। इसलिए हे चिदम्बरपुरुष ! मेरे हृदयमें बने रहो।
इति-श्रेण्यारोहण संधि
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